________________ विभाग] ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम् 42. तदन्त-तेने छेडे / 43. कूटः--कूटाक्षरो वडे / संयुक्ताक्षरो वडे। (संयुक्तः कूट इति व्यवह्रियते / ) कूटाक्षरनी तालिका नीचे प्रमाणेक्यूँ हम्ल्यू मयूँ ङ्ल्यूँ चम्ल्यूँ छम्यू मयूं ........ इम्यूँ 5 आम्ल्यू . नम्व्यू पy. मयूँ म्यूँ यूँ यूँ सम्ल्यू हळू पy आ तालिकामा प्रकार तथा लकारनो कूटाक्षर आपवामां आव्यो नथी / तेनुं कारण नीचेना. 10 श्लोकथी समजाशेः प्रागुक्तद्वात्रिंशत्स्तुतिपदपर्यन्ततः क्रमात् काद्याः / क्षान्ता लौ त्यक्त्वाऽमी कूटाः कार्ये महति योज्याः // 484 // –श्री. सिंहतिलकसूरिविरचितम् 'मन्त्रराजरहस्यम्'। 15 + सरखावो:(२) देहेऽस्मिन्वर्तते मेरुः सप्तद्वीपसमन्वितः। त्रैलोक्ये यानि भूतानि तानि सर्वाणि देहतः। सरितः सागराः शैलाः क्षेत्राणि क्षेत्रपालकाः॥ मेरं संवेष्टय सर्वत्र व्यवहारः प्रवर्तते // ऋषयो मुनयः सर्वे नक्षत्राणि ग्रहास्तथा। जानाति यः सर्वमिदं स योगी नात्र संशयः। पुण्यतीर्थानि पीठानि वर्तन्ते पीठदेवताः॥ ब्रह्माण्डसंज्ञके देहे यथादेशं व्यवस्थितः॥ 20 - सृष्टिसंहारकर्तारौ भ्रमन्तौ शशिभास्करी। __ नमो वायुश्च वह्निश्च जलं पृथ्वी तथैव च // -शिवसंहिता, पटल-२ . पुण्यवापानमा अनुवाद: आ देहमा सात द्वीपोथी युक्त एवो मेरु, सर्व नदीओ, सागरो, पर्वतो, क्षेत्रो, क्षेत्रपालो, ऋषिओ, मुनिओ, नक्षत्रो, ग्रहो, पवित्र तीर्थो, देवता(महाचैतन्य)थी अधिष्ठित पीठो, पीठदेवताओ, सृष्टिनी उत्पत्ति-स्थिति-विनाश 25 करनारा ब्रह्मादि, परिभ्रमण करनारा सूर्यचंद्र, आकाश, वायु, अग्नि, जल अने पृथ्वी वगैरे त्रणे लोकनी अंदर जेटली पण सदवस्तुओं छे, ते बधी आ देहमा छ। देहनी मध्यमां मेरु अने तेने वींटीने उपरनी सर्व वस्तुओ रहेली होवाथी आ देहवडे सर्वत्र व्यवहार प्रवर्ते छे (1) / आ बधुं जे जाणे छे, ते ब्रह्मांडनामक देहमा उचित रीते व्यवस्थित (रहेलो) योगी छे, एमां संदेह नथी। सारांश: 30 . मनुष्य शरीररूपी पिंड विशाल ब्रह्मांडनी प्रतिमूर्ति छ। जे शक्तिओ आ विश्वने चालु राखे छे ते सघळी आ नरदेहमा विद्यमान छ। आ कारणे स्थाने स्थाने मनुष्यदेहनो महिमा गावामां आवे छे। जे प्रकारे भूमंडलनो आधार मेरुपर्वत छे ते प्रकारे मनुष्यदेहनो आधार मेरुदंड अथवा करोडरज्जु छ। करोडरज्जु तेत्रीस अस्थिखंडोना जोडावाथी बन्युं छे / करोडरज्जु अंदरथी पोलुं छे अने नीचेनो भाग नाना नाना अस्थिखंडोनो छे। त्यां कंद छे अने तेनी आसपास जगतना आधार महाशक्तिरूप कुंडलिनी अथवा प्राणशक्ति रहे छे। 35 7 .