________________ 48 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत अष्टमन्त्रपदै रक्षा, स्वशिखा-मस्तकाक्षिषु / नासिका-मुख-घण्टीषु, नाभि-पादान्तयोः क्रमात् // 10 // अनुवादः-(पूर्वे दर्शावेला) आठ मंत्रपदो वडे अनुक्रमे पोताना शिखा (चोटली), मस्तक, आंख, नासिका, मुख, घंटिका, नाभ्यन्त (घंटिकाथी नाभि सुधी) अने पादान्त (नाभिनी नीचे पगना अंत सुधी). 5 रक्षा (माटे न्यासनी प्रक्रिया) करवी // 10 // तन्मध्ये पीतलयं, सैंमेरुस्तन्निरक्षरम् / तदन्त द्वि त्रिशैः कूटः, काथैः क्षान्तैः सुधांशुभम् // 11 // अनुवादः-तेनी वचमां पीळा वर्णनुं वलय करवू ते निरक्षर छे। सुमेरुस्वरूप छे। तेने छेडे (अंते) बत्रीश कूटो-कथी लईने क्ष सुधीना कराय तेथी चंद्र अने तारावाळु आ वलय छे // 11 // 10 36. अष्टमन्त्रपदैः-दिशा माटे जे आठ मंत्रपदो निर्णीत थया ते वडे / 37. रक्षा-देहना आठ आधारस्थानो माटे अहीं रक्षानो निर्देश छे; परंतु नाभि-पादान्तयोः एटले नाभ्यन्त अने पादान्त-आ प्रकारे घंटिकाथी नाभि सुधीना अने नाभिथी. पाद सुधीना सघळा आधारस्थानोनी रक्षानो निर्देश थाय छे / रक्षा माटेना मंत्रपदोनु संयोजन नीचे प्रमाणे :15 1. ऊँ हाँ अर्हद्भ्यो नमः शिखायाम् / 5. ऊँ हूँ साधुभ्यो नमः मुखे। 2. ऊँ ह्री सिद्धेभ्यो नमः मस्तके। 6. ॐ है ज्ञानेभ्यो नमः घण्टिकायाम् / 3. ऊँ हूँ आचार्येभ्यो नमः अक्ष्णोः। 7. ऊँ ह्रौ दर्शनेभ्यो नमः नाभ्यन्तेषु / 4. ऊँ हूँ उपाध्यायेभ्यो नमः नासिकायाम्। 8. ऊँ हू: चारित्रेभ्यो नमः पादान्तेषु / 38. तन्मध्ये—तेनी मध्यमां। यंत्रनी आकृतिनो प्रकार श्लोक नं. 2 थी श्लोक नं. 10 20 सुधीमां यथाविधि तथा यथाक्रम निर्णीत थयो / ते प्रकारना मध्यभागमां-अंतर्भागमां-जंबूद्वीपना वलयमां। 39. पीतवलयम्-पीळा रंगनुं वलय / 40. सुमेरुः–मेरु पर्वत-स्वर्णादि / 41. तन्निरक्षरम्--पीत वलयमा अक्षरनी स्थापना करवानी नथी। . सरखावो:* आद्यं पदं शिखां रक्षेत्, परं रक्षेत् तु मस्तकम् / तृतीयं रक्षेन्नेत्रे द्वे, तुर्य रक्षेच्च नासिकाम् // 7 // पञ्चमं तु मुखं रक्षेत् षष्ठं रक्षेच्च घण्टिकाम् / नाभ्यन्तं सप्तमं रक्षेत्, रक्षेत् पादान्तमष्टकम् // 8 // + (1) तन्मध्ये सङ्गतो मेरुः कटाक्षरैरैलङ्कृतः / उच्चैरुच्चैस्तरस्तारः, तारामण्डलमण्डितः॥१२॥