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________________ विभाग] ऋषिमण्डलस्तवयन्त्रालेखनम् आँदाशे फैणी शम्भुवर्णश्चन्द्रकलाघ्रयुक् / द्वि-चतुः-पञ्च-षट्-सप्ताष्ट-दशार्कस्वरभृत् क्रमात् // 5 // * अनुवादः-प्रथम अंश फणी (र्) / पछी शंमु (ह्) ह वर्ण चन्द्रकला अने गगनसहित (7) (हूँकार अने ते) अनुक्रमे बीजो (आ) चोथो (ई) पांचमो (उ) छट्ठो (ऊ) सातमो (ए) आठमो (ऐ) दशमो (औ) बारमो (अ) स्वरयुक्त........॥५॥ 20. आदावंशे-आदौ+अंशे / बीजाष्टकनो आदि अंश दर्शावायो एटले उत्तरांश अध्याहार रहे छे / आठे बीजोमां जे ध्रुव अंश छे ते आदि अंश तरीके दर्शावायो छे अने ते अंशने आठ स्वरथी अंजन करतां जे स्वर सहित बीजाक्षरो प्राप्त थाय ते उत्तरांश समजवा / ___2.1. फणी शम्भुः-फणी-फणा एटले र् / शम्भु-शंकर एटले ह् / र् वाळो ड्=ह+र् जे बीजाष्टकमां ध्रुव अंशो छ / 22. चन्द्रकला-कला के जेनी संज्ञा - छे / 23. अभ्र-शून्य के जेनी संज्ञा * छे।। 24. स्वरभृत्-दर्शावेला क्रम प्रमाणे स्वर- अंजन करतां आठ बीजो नीचे प्रमाणे मळे छे-- - 10 . * सरखावो: . . 15 (1) पूर्व प्रणवतः सान्तः, सरेफो द्वयब्धिपञ्चषान् / सप्ताष्ट-दश-सूर्याङ्कान्, श्रितो बिन्दुस्वरान् पृथक् // 9 // -ऋषिमण्डलस्तोत्रम् (2) कुण्डलिनी भुजगाकृति(ती) रेफाञ्चित हः शिवः स तु प्राणः / तच्छक्तिर्दीर्घकला माया तद्वेष्टितं जगद्वश्यम् // 440 // -श्रीसिंहतिलकसूरिरचितं 'मन्त्रराजरहस्यम्' . अनुवादः- रेफथी युक्त ह (ह) ते भुजग (सर्प) नी आकृतिवाळी कुण्डलिनी छे। केवळ 'ह' ते शिव छे। ते प्राण छ / दीर्घकला (1) ते तेनी शक्ति माया छ / मायाथी वेष्टित (मोहित) जगत् छे। तात्पर्य के जगत् 'ही' कारना ध्यानथी वश थाय छ। हाँ ही हूँ है हो हः -आ सघळा दीर्घ बीजाक्षरोने कोई षड्जातिमायाबीज कहे छे। अहीं बीजाष्टक जोईतुं 25 होवाथी प्रचलित बीजाक्षरोमां हूँ तथा हे जे बन्नेने मंत्रवादीओ हस्व गणे छे ते उमेरवामां आव्या छ। दीर्घ बीजाक्षरो देवीना वाचक मनाय छे अने हस्व बीजाक्षरो भैरवना वाचक मनाय छ। आ बीजाक्षरो पैकी चार बीजाक्षरगर्मित वर्णनवाळा श्लोको नीचे प्रमाणे मळे छे:शून्यवहून्यक्षरभवः प्रभवः सर्वसम्पदाम् / षष्ठस्वरयुतोऽरिनो धूम्रवर्णः स एव हि / नादबिन्दुकलोपेतः साकारः पञ्चवर्णरुक् // 25 // पूज्यतां विजयं रक्षां दत्ते ध्यातोऽस्य कुक्षिगः // 28 // हूँ 30 वामातनूजवामांससंस्थितो रूपकीर्तिदः। विसर्गद्वयसंयुक्तः स एव श्यामलद्युतिः। धनपुण्यप्रयत्नानि जयज्ञाने ददात्यसौ // 26 // हाँ जिनवामकटीसंस्थः प्रत्यूहव्यूहनाशनः // 29 // हः स एव स्वरसंयुक्तः स्थितो हस्ते जिनेशितुः। . -श्रीसागरचन्द्रसूरिविरचितः 'श्रीमन्त्राधिराजकल्पः' योगिभिर्ध्यायमानस्तु रक्ताभोऽतिशयप्रदः // 27 // ही (श्री जैनस्तोत्रसन्दोह पृष्ठ 236).
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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