________________ विभाग] यद्वा, अक्षरस्य मोक्षस्य हेतुत्वादक्षरं ब्रह्मणो शानस्य हेतुत्वाच्च ब्रह्म। अत एव च सिद्धचक्रस्य सिद्धा विद्यासिद्धादयस्तेषां चक्रमिव चक्रं यन्त्रकविशेषस्तत्र सद् आधत्वेन प्रधानं बीजं तत्त्वाक्षरम् / स्वर्णसिद्धयादिमहासिद्धिहेतोः सिद्धचक्रस्य पञ्च बीजानि वर्तन्ते, तेष्विदमाधमक्षरमित्यर्थः। तेन स्वर्णसिद्धयादिमहासिद्धीनामिदं मूलहेतुरित्युक्तम् / अत एव चेदं ध्यानाहमित्यर्थः / नन्वहमित्यस्य योऽभिधेयः स एव प्रणिधेयत्वेन मुख्यः। अहमिति शब्दस्त्वर्हद्वाचकत्वेन 5 प्रणिधानाहत्वाद् गौणः। गौणं च मुख्यानुयायीति मुख्यस्यैव प्रणिधानं कर्तुमुचितम् / एवं च- "अहमित्यक्षरं ब्रह्म, वाच्यं श्रीपरमेष्ठिनम् / सिद्धचक्रादिबीजेन, सर्वतः प्रणिध्महे // " इति कार्य स्यात्। अत्र चैवमन्वयः, सिद्धचक्रादिबीजेनाहमित्यनेन वाच्यं परमेष्ठिनं प्रणिध्मह इति। 10 नैवम् , यथा कश्चित् स्वामिना प्रेषिते लिखिते समायाते स्वामिनीवान्तरङ्ग बहुमान प्रकटयन् स्वामिनि सातिशयां प्रीति प्रकाशयति, एवं परमेष्ठिनो वाचकमर्हमिति प्रणिदधन् श्रीहेमचन्द्रसूरि अथवा अक्षर-अविनश्वर एवा मोक्षना हेतुरूप होवाथी 'अहं' अक्षर कहेवाय छे, अने ब्रह्मज्ञानना हेतुरूप होवाथी 'ब्रह्म' कहेवाय छे। एथी ज विद्यासिद्धादिरूप सिद्धोनो समूह चक्ररूपे मां छे एवा श्री सिद्धचक्ररूप यन्त्रविशेषमां ते (प्रथम होवाथी) प्रधान बीज-तत्त्वाक्षर छे। स्वर्णसिद्धि वगेरे 15 महासिद्धिओना कारणभूत एवा सिद्धचक्रनां पांच बीजो छे, तेमां आ अर्ह आदि अक्षर छे। तेथी स्वर्णसिद्धि वगेरे महासिद्धिओनो आ (अर्ह) मूल हेतु छे, एथी ज आ (अर्ह) शब्द ध्यानने माटे योग्य छ। प्रश्न-अहँ ए शब्दनु जे अभिधेय ते ज प्रणिधेय होवाथी मुख्य छे, 'अर्ह ' शब्द तो अरिहंतनो वाचक होईने प्रणिधानने योग्य होवाथी गौण छे अने गौण तो मुख्यनुं अनुयायी होय छे। तेथी मुख्यनुं ज प्रणिधान करवु उचित छे। तेयी अन्वय आ प्रमाणे करवो जोईए . "सिद्धचक्रना आदिबीज 'अर्ह' एवा अक्षरथी वाच्य जे परमेष्ठी छे तेनुं अमे ध्यान करीए छीए*।" _उत्तर-एवो अन्वय करवो ठीक नथी / केमके, कोई मनुष्य पोताना स्वामीए लखीने मोकलेलो संदेशो (पत्र) आवतां स्वामीनी जेम ज तेना उपर अंतरंग बहुमान प्रकट करीने स्वामी प्रत्ये साऽतिशय भक्ति बतावे छे ते ज प्रमाणे परमेष्ठीना वाचक 'अर्ह' अक्षर- प्रणिधान करता कलिकाल सर्वज्ञ भगवान् 25 हेमचन्द्रसूरिए पण मुख्य प्रणिधेय श्री अरिहंत भगवंतमां पोतानुं अतिशयवाळु प्रणिधान जणाव्युं छे। 20 ____* अहीं शंका ए छे के, मुख्य प्रणिधान अरिहंतनु करवान होय अने 'अर्ह' शब्द तो अरिहंतनो वाचक ' होवाथी गौण छे तेथी ग्रन्थना प्रारंभमां "अर्ह अक्षरनुं ध्यान करीए छीए " एवं जे जणाव्युं छे ते उचित नथी। एना शब्दथी वाच्य परमेष्ठी अरिहंतनुं अमे ध्यान करीए छीए" एवं लखवानी जरूर हती अने तेवा अर्थनो श्लोक रंचवानी जरूर हती। बदले 30