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________________ 37 विभाग] अवयवव्याख्यामात्रमुक्तम्, विशेषव्याख्यानस्वरूपं समयाद् गुरुमुखाद् वा पुरुषविशेषेण ज्ञेयमिति // 1.1.1. // आ तो व्याख्यानो एक अंशमात्र कह्यो छे। व्याख्यानुं विशेष स्वरूप आगमथी, गुरुमुखथी अथवा तज्ज्ञ पुरुषविशेषथी (विशेषार्थिए) जाणी लेवू जोईए // 1. 1. 1. // परिचय कलिकालसर्वज्ञ भगवान् श्रीहेमचन्द्राचार्ये रचेला 'श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन' नामक व्याकरणग्रंथमां मंगलाचरणरूपे प्रथम 'अर्ह' ए सूत्र छ ने तेना ऊपर 'तत्त्वप्रकाशिका' टीका अने ते टीका ऊपर 'शब्दमहार्णव' नामे पोते ज रचेलो न्यास छे, ते अमे अहीं अनुवाद-विवेचन साथे आपेल छ / मूळ विवरण गद्यमां छे। आजे उपलब्ध साहित्यमा 'अहं' तत्त्व के बीजाक्षरनो विशद प्रकाश जो कोईए आप्यो होय तो 10 ते आ सूत्र अने तेनी टीकाओ तेमज 'योगशास्त्र'ना आठमा प्रकाश द्वारा सूरिचक्रचक्रवर्ति श्रीहेमचन्द्राचार्य भगवंते आप्यो छे। एमणे अहीं 'अहं' नुं स्वरूप, अभिधेय, तात्पर्य, फल, प्रणिधानना संभेद अने अभेदरूप बे प्रकारो वगेरे द्वारो वडे स्फुट विवेचन कयुं छे। जैनेतरोनी दृष्टिए मंत्रविषयक तुलनात्मक हकीकतो पण रजू करी छे। . 'अर्ह', 'अर्ह' अने 'है' तत्त्वनी उपासना जे पोते रचेला 'योगशास्त्र'ना आठमा प्रकाशमां 15 आपेली छे, तेनुं पण अहीं सूचन कयुं छे अने 'ह' बीजनी प्रधानता दर्शावी छ / साचे ज, आ टीकाओ द्वारा श्रीहेमचंद्राचार्य ध्याननी उत्कृष्ट प्रक्रियानी समज आपी छे एम कही शकाय /
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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