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________________ 32 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत फलार्थिनां सेवाप्रवृत्त्यङ्गभूतां योग-क्षेमशालितामस्योपदर्शयन् लब्धपरिपालनमन्तरेण, अलब्ध- ' लाभस्याकिश्चित्करत्वात क्षेमोपदर्शनपूर्व योगमुपदर्शयति (क्षेमम्-अशेषविघ्नविधातनिघ्नम् / ) [अशेषाः-] कृत्स्ना ये विघ्नाः सत्क्रियाव्याघातहेतवस्तेषां विशेषेण हननं समूलकाषं कषणम् , 5 तथाऽसौ विघ्नान् विहन्ति यथैते न पुनः प्रादुःषन्ति; 'वि'शब्देन घातविशेषणाचायमर्थलाभः, 'अशेष'शब्देन तद्विशेषणाद् वेति, तत्र [निघ्नम्-] परवशम् / ___यथा मदजलधौतगण्डस्थलो मदपारवश्यादगणितस्वपरविभागो गजः समूलवृक्षाधुन्मूलने लम्पटो भवति, एबमयमपि परमाक्षरमहामंत्रो ध्यानावेशविवशीकृतो विघ्नोन्मूलने प्रभविष्णुर्भवति / . (योगः-अखिलदृष्टाऽदृष्टफलसंकल्पकल्पद्रुमोमपम् / ) ___ अखिलानि संपूर्णानि यानि दृष्टानि च चक्रवर्तित्वादीनि वाऽदृष्टानि स्वर्गापवर्गरूपाणि फलानि, तेषां संकल्पे-संपादने कल्पवृक्षेणोपमीयते यत् तत् तथा। व्यवहारसंदृष्टयाऽयमुपमानोपमेयभावः लोके तस्य कल्पितफलदातृत्वेन प्रसिद्धत्वात् , अस्य तु संकल्पातीतफलप्रदायित्वात् / ___ फळना अर्थिओनी सेवा अने प्रवृत्तिमां कारणभूत एवी आ 'अर्ह' नी योगक्षेमशालिता बतावतां, लब्धना परिपालनरूप क्षेम विना अलब्धना लाभरूप योग निरर्थक होवाथी प्रथम क्षेमने बतावीने : 15 पछी योगने बतावे छे: (4. क्षेम) शुभ क्रियामां व्याघात करनारां सर्व विघ्नोनुं समूल उच्छेदन करवाने माटे ते (अर्हबीज) समर्थ छ। आ (अर्ह बीज) विघ्नोनो एवी रीते नाश करे छे के जेथी ते पुनः उत्पन्न थई शकतां नथी / आवा अर्थनी प्राप्ति 'घात' शब्दनी पूर्वे 'वि' उपसर्ग जोडवाथी थाय छे, अथवा 'अशेष' शब्द ते 20 (विघ्न)नुं विशेषण होवाथी पण एवो अर्थ करी शकाय छे / जेम जेनुं मदना जलथी गंडस्थल धोवाई रघुछे एवो मदोन्मत्त हाथी मदना आवेशथी परवश थतां स्व के परना विभागना भेदने गणकार्या विना वृक्षोने मूलथी उखेडी नाखे छे तेम ध्यानना प्रभावथी विवश करायेल आ-परमाक्षर महामंत्र विघ्नोनुं समूल उच्छेदन करवामां समर्थ बने छे (एटले ते क्षेमंकर छे)। 25 (5. योग) वळी, जे दृष्ट फळो-चक्रवर्तिपणुं वगेरे, अने अदृष्ट फळो-स्वर्ग अने मोक्ष, ते प्राप्त कराववामां आ(अर्ह) कल्पवृक्ष समान छे (एटले ते योजक छे)। व्यवहारदृष्टिए आ उपमानउपमेय भाव छे कारण के जगतमां कल्पवृक्ष इच्छित (इच्छा करी होय तेटलं ज) फळ आपे छे ए वात प्रसिद्ध छ; ज्यारे आ (अर्ह महामंत्र) तो संकल्प करतां पण वधारे फळ आपे छ /
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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