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________________ विभाग] व (तात्पर्यम्-सकलागमोपनिषदभूतम्।) पुनर्विशेषणद्वारेण तस्यैव प्राधान्यमाह - सकलागमोपनिषद्भूतम् - सकलस्य द्वादशाङ्गस्य गणिपिटकरूपस्यैहिकामुष्मिकफलप्रदस्यागमस्योपनिषद्भूतं रहस्यभूतं, पञ्चानां परमेष्टिनां यानि 'अ-सि-आउ-सा' लक्षणानि पञ्चबीजानि, यानि च अरिहन्तादिषोडशाक्षराणि तान्येव द्वादशाङ्गस्योपनिषदिति / यदाह पञ्चपरमेष्ठिस्तुतौ - "सोलसपरमक्खरबीयबिंदुगम्भो जगुत्तमो जोओ। . सुअबारसंगबाहिरमहत्थ-sपुव्वत्थ परमत्थो॥" यदि वा, सकला ये आगमाः पूर्व-पश्चिमाम्नायरूपास्तेष्वपि परमेश्वरपरमेष्ठिवाचकं 'अहं' इति तत्त्वं उपनिषद्रूपेण प्रणिधीयत इति, सकलानां स्वसमय-पैरसमयरूपाणामागमानामुपनिषद्भूतं भवतीति / 20 (3. ब. तात्पर्य) 10 वळी बीजा विशेषणद्वारा ते बीजनुं ज मुख्यपणुं बतावे छे। आ ‘अर्ह' सकल आगमोना उपनिषद्भूत छे- एटले के इहलौकिक-पारलौकिक सर्व फळो आपनार गणिपिटकरूप समन द्वादशांग आगमनुं आ 'अर्ह' रहस्य छे। पांच परमेष्ठिओना 'अ-सि-आ-उ-सा' रूप पांच बीजो अने जेमां अरिहंत आदि सोळ अक्षरो ('अरिहंत-सिद्ध-आयरिय-उवज्झाय-साहु') पण द्वादशांग-आगमनुं रहस्य छ। 'परमेष्ठिस्तुति' मां कयुं छे के 15 “सोळ परमाक्षररूप बीजो अने बिंदुओ जेना गर्भमा छे ते (मंत्राक्षरोनो) योग जगतमा उत्तम छे अने द्वादशांगरूप (अंगप्रविष्ट) श्रुतनो तथा (उत्तराध्ययनादि) अंगबाह्यश्रुतनो महार्थ, अपूर्वार्थ अने परमार्थ छे।" अथवा प्राचीन आम्नाय अने ते पछीना आम्नायरूप सर्व आगमोमां पण परमेश्वरपरमेष्ठिना वाचक 'अहं' तत्त्व- उपनिषद्पे प्रणिधान कराय छे, तात्पर्य ए छे के ते (अर्ह) स्वपरसमयरूप सर्व आगमोनुं रहस्य छ। .. 1. सर्वपार्षदत्वाच्छब्दानुशासनस्य समग्रदर्शनानुयायी नमस्कारो वाच्यः / अयं चाऽहं अपि तथा / तथाहि "भकारेणोच्यते विष्णू रेफे ब्रह्मा व्यवस्थितः / हकारेण हरः प्रोक्तस्तदन्ते परमं पदम् // " इति श्लोकेन 'अर्ह 'शब्दस्य विष्णुप्रभृतिदेवतात्रयाभिधायित्वेन लौकिकागमेष्वपि 'अहं' इति पदमुपनिषद्भूतमित्यावेदितं भवति / तदन्त इति तुरीयपादस्यायमर्थः-तस्य 'अर्ह 'शब्दस्यान्त उपरितने भागे परमं पदं 25 सिद्धिशिलारूपं तदाकारत्वादनुनासिकरूपा कलाऽपि परमं पदमित्युक्तम् / / अनुवादः-शब्दानुशासन-व्याकरण सर्व सभाजनो माटे होय छे. तेथी सर्व दर्शनोने मान्य एवो नमस्कार कहेवो जोईए। एवो प्रश्न थाय तो तेनो जवाब आपतां कहे छे के-आ 'अहं' शब्द पण ए ज प्रकारनो छ। अन्य शास्त्रोमां कां छे के "अकारथी विष्णु कहेवाय छे, रेफमां ब्रह्मा रहेला छे, हकारथी शिव जणान्या छे अने पछी - अनुस्वार 30 ए परम पदनो वाचक छ / " - आ श्लोकथी 'अर्ह' शब्द विष्णु वगैरे त्रणे देवताओनो वाचक होवाथी लौकिक आगमोमां पण आ 'अर्ह' पद रहस्यरूप छे, एम जणाव्यु छ। आ श्लोकमां 'तदन्ते' एवं जे चो) पाद छे तेनो अर्थ ए छे के-'अर्ह' शब्दनी अंते उपरना शिरोभागमा सिद्धशिलारूप परमपद छे, अनुनासिकरूप कला पण सिद्धशिलाना आकारवाळी होवाथी ते परमपद छे, अम कयुं छे / 35
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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