________________ 30 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत समयप्रसिद्धस्य चक्रविशेषस्य निरूढमभिधानम् / यद्वा सिद्धयन्ति निष्ठितार्था भवन्ति, लोकव्यापिसमये (e) कलारहितमिदमेव तत्त्वं ध्यायन्तोऽस्मादिति “बहुलम्" [5-1-2] इति क्ते, ततो विशेषणसमासे सिद्धचक्रम्। ___ एतच्च तत्र तत्र व्यवस्थितपरमाक्षर ध्यानाद् योगर्द्धिप्राप्ता यस्मात् (योगर्द्धिप्राप्तावस्मात्) सिद्धि5 रित्युच्यते (?) इति सूपपादं सिद्धत्वमस्य चक्रत्येति। ___तस्येदम् , अर्हकारं प्रथमं बीजम् / बीजसाधाद् बीजम् / यथाहि-बीजं प्रसव-प्ररोह-फलानि प्रसूते, तथेदमपि पुण्यादिप्ररोह-मुक्ति-मुक्तिफलजनकत्वाद् बीजमुच्यते / सन्ति पञ्चान्यन्यान्यपि हाकारादीनि बीजानि, तदपेक्षयाऽस्य प्राथम्यम् , प्रथमं साधूनामितिवत् / प्रथममग्रणीभूतं व्यापकमित्यर्थः / व्यापकत्वं चास्य सर्वबीजमयत्वात् / 10. इदमेव हि बीजम्–'अधोरेफ-आ-ई-ऊ-औ-अ-अः' एतैर्युक्तं बीजं भवतीति व्यापकत्वं अस्य / यदि वा, परसमयसिद्धानां त्रैलोक्यविजया-घण्टार्गल-स्वाधिष्ठान-प्रत्यङ्गिरादीनां चक्राणामिदुमेव हकारलक्षणं प्रधानं बीजम् / अथवा, अकारादि-क्षकारान्तानां पश्चाशतः सिद्धत्वेन प्रसिद्धानां यच्चक्रं समुदायस्तस्य प्रधानमिदमेव बीजम्। 15 . (1) सिद्धचक्र ते सिद्धान्तमां प्रसिद्ध एवा चक्रविशेष- रूढ नाम छ / (2) अथवा तो ए ज तत्त्व (अह) नुं लोकव्यापिसमयमां (?) कलारहित ध्यान करनारा महात्माओ एथी सिद्ध थाय छे माटे 'सिद्ध' का, पछी विशेषण समासथी 'सिद्धचक्र' शब्द बन्यो छ। (3) अथवा ए चक्रमा रहेला परमाक्षरोना ध्यानयी योगनी ऋद्धिओ प्राप्त थतां ‘सिद्धि थई' एम कहेवाय छे, तेथी ए चक्रनुं सिद्धपणुं स्पष्ट ज छ। 20 ते सिद्धचक्रनु आ अहंकार प्रथम बीज छे। बीजनी साथे साधर्म्य होवाथी ए बीज कहेवाय छ। जेम बीजमाथी फणगो, अंकुरो अने फळ निपजे छे तेम आ 'अर्ह 'कार बीजमाथी पण पुण्यानुबंधिपुण्य, भुक्ति अने मुक्ति उत्पन्न थाय छे तेथी ते पण 'बीज' कहेवाय छे। - आदिबीज कहेवानुं तात्पर्य ए छे के, हा ही हूँ ह्रौ हु: ए प्रमाणे बीजां पण पांच बीजो छे तेनी अपेक्षाए हूँ बीज प्रथम छे माटे तेने आदिबीज कयुं छे / जेमके अमुक व्यक्ति साधुओमां प्रथम छे, 25 ते रीते आ 'अर्ह' पण बधां बीजोमां प्रथम छ / अहीं प्रथम एटले अग्रणीभूत (अप्रेसर) अथवा व्यापक, एम अर्थ करवो। 'अर्ह' ए बीजने व्यापक एटला माटे कयुं छे के, ते सर्व बीजमय छ। - तात्पर्य आ प्रमाणे छे–'नीचे रेक तथा आ-ई-ऊ-औ अं अः' थी युक्त (वर्ण) होय ते बीज थाय छे; जेमके-ह+र+आ+म् = हाँ, ह्++ई+म् = ही, ह्++ऊ+म् = हूँ, ह्++ औ+म् = हौ, ह+र+अ+म् = हूँ अने ह++अः = हः / ए रीते आ बीज (हूँ) व्यापक छ। 30 अथवा तो जैनेतर शास्त्रोमां प्रसिद्ध त्रैलोक्यविजया, घण्टार्गल, स्वाधिष्ठान, प्रत्यङ्गिरा वगेरे चक्रोमां पण आ ज 'ह'कार (सपरिकर) मुख्य बीज होय छ। __ अथवा तो अकारथी क्षकार सुधीना पचास वर्णो सिद्धाक्षररूपे प्रसिद्ध छे (एटले के सिद्धमातृका कहेवाय छे) तेओनुं जे चक्र (समुदाय, वर्णमाला) ते सिद्धचक्र तेनुं आ 'हकार' ज मुख्य बीज छे।