________________ विभाग] परमयोगर्द्धिरूपं तद्वान् परमेश्वरः, यथा महाराज इति, अत्र हि महत्त्वं गुणं विशिषद् द्रव्यं विशिनष्टीति परमेष्ठिन इति / परमे पदे तिष्ठति यः सः परमेष्ठी, अनेन च सविशेषणेन सकलरागादिमलकलङ्कविकलो योग-क्षेमविधायी शस्त्रायुपाधिविरहितत्वात् प्रसत्तिपात्रं ज्योति(ती)रूपं देवाधिदेवः सर्वज्ञः पुरुषविशेषः। यदाह "रागादिभिरनाक्रान्तो, योग-क्षेमविधायकः। नित्यं प्रसत्तिपात्रं यस्तं देवं मुनयो विदुः॥" मन्त्रकल्पे हि मन्त्रवर्णानां वाचकत्वेन कीर्तनाद् वाचकमित्युक्तम् / यथा 'अ-सि-आ-उ-सा' इति बीजपञ्चकं पञ्चानामर्हदादीनाम् , 'ड-र-ल-क-श-ह-य'मिति आधारादिसप्तदेवीनाम् तथा अकारादिभिः षोडशस्वरैर्मण्डलेषु षोडश रोहिण्याद्या देवता अभिधीयन्ते, ततस्तासां प्रतीतेरिति / . (तात्पर्यम्-सिद्धचक्रस्यादिबीजम् / ) तात्पर्यस्य चाभिधानपृष्ठभावित्वात् सिद्धचक्रस्यादिबीमित्यादिना पश्चादुच्यते। 10 ऋद्धिरूप छे ते ऐश्वर्यवाळा परमेश्वर समजवा; जेम के 'महाराज' शब्दमां महत्त्व राजाना (राजापणारूपी) गुणमा विशेषता दर्शावे छे, छतां वस्तुतः ए राजारूपी पुरुषनी विशेषता छे; ते प्रमाणे 'परमेश्वर' शब्द पण गुणनी (सामर्थ्यनी-ऐश्वर्यनी) विशेषता दर्शाववापूर्वक कोई द्रव्यनी ज (व्यक्तिनी ज) विशेषता दर्शावे छे। ए व्यक्ति कई ते स्पष्ट करवा माटे 'परमेष्ठिनः' पद छ। परमेश्वर एवा विशेषण सहित 'परमेष्ठी' शब्दथी देवाधिदेव अरिहंत परमात्मा लेवाना छ। परम पद पर स्थित होय ते 'परमेष्ठी' 15 कहेवाय। आ पद साथे 'परमेश्वर' विशेषण तरीके मूकीए तो ज सकल रागादि मलरूप कलङ्कथी रहित, सर्व जीवोना योग अने क्षेमने वहन करनारा, शस्त्रादि उपाधिथी रहित होवाथी प्रसन्नताना पात्र, ज्योतिरूप, देवाधिदेव अने सर्वज्ञ एवा ते पुरुषविशेष (परमात्मा-अरिहंत) समजाय। कयुं छे के ____“जेओ राग वगेरेथी आक्रान्त नथी, योग अने क्षेमना करनारा छे अने सदा प्रसनताना पात्र छे तेमने मुनिओ 'देव' कहे छ।” 20 .. 'मंत्रकल्प' मां मंत्रना वो 'वाचक' तरीके ओळखाववामां आव्या छे (माटे ज 'अहं' ते 'परमेश्वर एंवा परमेष्ठीनो वाचक छे अम कयुं छे।) ते प्रमाणे 'असिआ उसा' रूप बीजपंचक अर्हत् वगेरे पांच परमेष्ठीना वाचक छ। तथा 'डर ल क श हय' ते देहगत मूलाधार वगेरे चक्रोनी देवीओनां नामना प्रथमाक्षरो अनुक्रमे ते देवीओना वाचक छे, तथा 'अकार' वगेरे सोळ स्वरो यंत्रोमां रोहिणी वगेरे सोळ विद्यादेवीओना वाचक छे, कारण के तेमनी तेथी (ते ते स्वरोथी) प्रतीति थाय छे। 25 (3. अ. तात्पर्य) व्याख्यामां अभिधान पछी तात्पर्यने रजू करवानी पद्धति होवाथी 'सिद्धचक्रना आदिबीज' वगेरे वात्पर्यनो हवे पछी निर्देश करे छ। 30 1. आधारादिसप्तदेव्यो डाकिनी-राकिनी-लाकिनी-काकिनी-शाकिनी-हाकिनी-याकिनीरूपाः॥ ... अनुवाद:- आधार वगेरे चक्रोनी सात देवीओनां नाम आ प्रकारे छे (1) डाकिनी (2) राकिनी (3) लाकिनी (4) काकिनी (5) शाकिनी (6) हाकिनी अने (7) याकिनी.. 2. सिद्धेति-सिद्धाः विद्यासिद्धादयस्तेषां चक्रमिव चक्र, तस्य पञ्चबीजानि तेषु चेदमादिबीजम् / अनुवाद:-सिद्धो एटले विद्यासिद्धो तेमनो समूह जेमां होय ते। तेनां पांच बीजो छे। तेमां आ बीज प्रथम छे।