________________ विभाग] .. यद् धर्मसारोत्तरम् " अक्षरमनक्षरं वै द्विविधं तत्त्वमिष्यते / अक्षरं बीजमित्याहुर्निबर्बाजं चाप्यनक्षरम् // " यद्वा न क्षरति-न चलति स्वस्मात् स्वरूपादक्षरं तत्त्वं ध्येयं ब्रह्मेति यावत् , वर्ण वा। द्विविधो हि मन्त्रः, कूटरूपोऽकूटरूपश्च। संयुक्तः कूट इति व्यवह्रियते, इतरोऽकूट इति / अत एव चास्माद् ‘वर्णाव्ययात् कारः' [72-156] इति कारं कुर्वते वृद्धाः, 'क्षकारः' इति, "उँकारः' इति, 'म्यूँकारः' इति, 'अकारः' इतिवत् / कूटेष्वेकस्यैवाक्षरस्य मन्त्रत्वात् , शेषस्य तु परिकरत्वात् / 'धर्मसारोत्तर' मां कयुं छे के ___"अक्षर अने अनक्षर एम बे प्रकारनुं तत्त्व छे, तेमां जे बीज छे ते अक्षरतत्त्व कहेवाय छे अने जे 10 बीजरहित छे ते अनक्षरतत्त्व कहेवाय छे।" (आ अक्षरतत्त्वनो एक अर्थ थयो / हवे बीजो अर्थ-) पोताना स्वरूपी जे चलित न थाय ते अक्षर / एटले अक्षर शब्दथी तत्त्वध्येय रूप ब्रह्म लेवं, अथवा वर्णात्मक अक्षर लेयो।। प्रश्न-('अ आ' वगेरे जे एक ज वर्ण होय तेने तो वर्ण के अक्षर कही शकाय, पण अहीं तो 'अर्ह' मा घणा अक्षरो मेगा थयेला छे एटले एने वर्ण के अक्षर शी रीते कही शकाय ? 'अक्षराणि ' 15 एम कहेवू जोईए, पण अहीं तो 'अक्षरं ' कहेलं छे।) उत्तर-मंत्रो बे प्रकारना छेः (1) कूट अने (2) अकूट / संयुक्त होय तेने 'कूट ' कहे छे अने संयुक्त न होय तेने ' अकूट ' कहेवामां आवे छे / (कूट मंत्रमा अक्षरो जो के घणा होय छे तो पण तेमां मंत्र तो एक ज अक्षर होय छे, बाकीना अक्षरो ते मंत्रना परिकर-परिवाररूप होय छे।) .. कूट मंत्रमा घणा अक्षरो होवा छतां एक ज अक्षर मंत्रस्वरूप होवाथी ‘वर्णाव्ययात् कारः' 20 [7-2-156] ए सूत्रथी क्षकार, उकार, यूंकार वगेरे शब्दोने वृद्धो सिद्ध करे छे; कारणं के आ सूत्रनो अर्थ एवो छे के जे एकेक वर्ण होय तेना पछी (तथा अव्यय पछी) 'कार' प्रत्यय लगाडवो; जेम के–अकार, इकार, उकार / परंतु अहीं तो कूट मंत्रमा घणा अक्षरो छे एटले शी रीते 'कार' प्रत्यय लगाडाय? छतां वृद्ध पुरुषो क्षकार(क्ष्+अ), हयूंकार वगेरे शब्दोमां 'कार' प्रत्यय लगाडे छे, तेनुं कारण ए छे के, आ कूट मंत्रोमां घणा अक्षरो देखाता होवा छतां पण वस्तुतः एमां एक ज अक्षर मंत्रस्वरूप 25 होय छे बाकीना अक्षरो तो तेना परिवारभूत छे, माटे आवा कूट मंत्रोने पण एकाक्षरी मंत्र ज मानीने वृद्ध पुरुषो 'कार' प्रत्यय लगाडे छे / ते ज न्याये अहीं 'अर्ह' शब्द अनेकाक्षरी देखातो होवा छतां एमां मंत्राक्षर तो एक ज ('ह') होवाने लीधे अमे 'अक्षराणि' एवो बहुवचननो प्रयोग न करतां 'अक्षरं' एवो एकवचननो प्रयोग कर्यो छे। प्रश्न—(कूट मंत्रोमां अनेक अक्षरो होवा छतां मंत्र तो एक अक्षर जेटलो ज जो होय छे तो 30 बाकीना अक्षरोनी शी जरूर छे!) ...