________________ नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत शब्दमहार्णवन्यासः अर्ह' इत्यादि-वाक्यैकदेशत्वात् साध्याहारत्वादध्याह्रियमाणप्रणिधानलक्षणक्रियाकर्मण उक्तत्वात् " नाम्नः प्रथमैक-द्वि-बहौ" [2-2-31] इत्युत्पन्नाया प्रथमाया 'अर्ह' इत्येतस्मात् सूत्रत्वाल्लुक् / तदर्थं व्याचष्टे व्याख्या च स्वरूपा-ऽभिधेय-तात्पर्यभेदात् त्रेधा। तां च 'अहं' इत्यादिना दर्शयति 5 –तत्र ‘अक्षरम्' इति स्वरूपम् / 'परमेष्ठिनो वाचकम्' इत्यभिधेयम् / 'सिद्धचक्रस्य' इत्यादिना तात्पर्यम् / (स्वरूपम् - ' अर्ह' इत्येतदक्षरम्।) अक्षरमिति-अक्षरं बीजम् / तदेवाह-आदिवीजमिति। कस्य तदादिबीजम् ? सिद्धचक्ररूपस्य तत्त्वस्य; सबीज-निर्बीजभेदेन तत्त्वस्य द्वैविध्यात्। अनुवाद 20 'अर्ह' एटलं—एकलु ज एमने एम होय तो तेनो कोई अर्थ संगत थतो नथी। ए एकलं पूर्ण . वाक्य बनतुं नथी, एटले कोई पण क्रियानो अध्याहार करवो आवश्यक छे तेथी 'अहं' ए वाक्यनो एक भाग थयो। जे क्रियानो अध्याहार करवानो छे ते बीजो भाग थयो। अहीं प्रकृतमां प्रणिधानक्रियानो अध्याहार करवानो छे, तेथी 'अर्ह' ए प्रणिधानक्रियानुं कर्म छे। क्रियापदनो प्रयोग कर्मणि-प्रत्यय 15 लावीने कर्यो छे, एटले कर्म उक्त थाय छे ने तेथी तेने "नाम्नः प्रथमैक-द्वि-बहौ" [2-2-31] ए सूत्रथी . प्रथमा विभक्ति प्राप्त थाय छे; ए प्रथमा विभक्तिनो अहीं सूत्रपणाने कारणे 'लुक्'-लोप करवामां आव्यो छे / व्याख्याना त्रण प्रकारो छे:-(१) स्वरूप (2) अभिधेय अने (3) तात्पर्य / तेमा 'अक्षर' थी स्वरूप, ‘परमेष्ठिनो वाचक' थी अभिधेय अने 'सिद्धचक्रनु आदिबीज' वगेरेथी तात्पर्य कहे छ। (आ प्रकारो विस्तारथी समजावे. छे / ) / (1. स्वरूप) अक्षर एटले बीज / अक्षरनो अर्थ बीज थाय छे, ए ज वात 'आदिबीजम् ' ए पदथी जणावी छ / प्रश्न-ए कोर्नु आदिबीज छे ? उत्तर-सिद्धचक्ररूपी तत्त्व- ए आदिबीज छे; तत्त्वना सबीज अने निर्बीज एवा बे प्रकारो छ। (तमां सिद्धचक्ररूपी जे सबीज तत्त्व छे तेनुं आ आदिबीज छ / ) 25 1. 'न्याससारसमुद्धारः' इत्याख्यन्यासानुसारी तत्तच्छब्दोपरि विशिष्टोऽर्थनिर्देश स एवोहङ्कयते। अर्हति पूजामित्यर्ह-'अः' [उणा० 2.] इत्यः। पृषोदरादित्वात् . सानुनासिकत्वम् / 'अहम्' इति मान्तोऽप्यस्ति निपातः। ननु 'अर्हम्' इत्यव्ययं स्वरादौ चादौ च न दृष्टम् , तत् कथमव्ययम् ? सत्यम् 'इयन्त इति संख्यानं, निपातानां न विद्यते। प्रयोजनवशादेते, निपात्यन्ते पदे पदे॥' 30. अनुवाद:-'न्याससारसमुद्धार'मां 'शब्दमहार्णवन्यास'ना ते ते शब्दना विशिष्ट अर्थनो निर्देश के (आ अने पछीनी टिप्पणीओमां आपेल संस्कृतपाठ 'न्याससारसमुद्धार'नो छे)। पूजाने योग्य ते 'अहं' कहेवाय / पृषोदरादि सूत्रथी 'अर्ह' शब्दने अनुनासिक लगाडता 'अहं' बने छ। वळी 'अहम् ' एवो 'म'कारान्त निपात पण छे। अहीं ए प्रश्न थाय छे के, स्वरादिगण के चादिगणमां 'अहम्' अन्यय आवतुं नथी तो पछी ते कई रीते अव्यय छे 1 तेनो खुलासो ए छे के "निपातो (अन्ययो) आटला जछे एवी संख्या नियत नथी। प्रयोजन प्राप्त थतां स्थळे स्थळे निपातितं कराय छे।" 35