________________ 04 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत उपसंहार: एतदेव समाश्रित्य कला घर्धचतुर्थिका। . नाद-बिन्दु-लयाचेति कीर्तिताः परवादिभिः // 21 // मूर्ती ह्येष अमूर्तश्च कलातीतः कलान्वितः। सूक्ष्मच बादरश्चेति व्यक्तोऽव्यक्तथ पठ्यते // 22 // निर्गुणः सगुणश्चैव सर्वगो देशसंस्थितः। अक्षयः क्षययुक्तश्च अनित्यः शाश्वतस्तथा // 23 // // इति 'अर्ह' अक्षरतत्वस्तवः // उपसंहार:10 आ 'अह' नो आश्रय लईने परवादीओए साडी त्रण मात्रावाळी कला (कुंडलिनी :), नाद, बिंदु अने लय कह्या छ / (तात्पर्य के परोक्त कुंडलिनी योग, नादानुसंधान योग, लययोग वगेरे ‘अर्ह' ना ध्याननी प्रक्रियामांथी नीकळ्या छे) // 21 // आ 'अर्ह 'रूप सर्वज्ञ परमात्मा (स्याद्वादशैलीए) मूर्त-अमूर्त, कलारहित-कलासहित, सूक्ष्मस्थूल, व्यक्त-अव्यक्त, निर्गुण-सगुण, सर्वव्यापी-देशव्यापी, अक्षय-क्षयवान् अने अनित्य-नित्य 15 छे // 22-23 // परिचय श्रीधर्मदास गणिए रचेला 'धर्मोपदेशमाला' नामना 541 प्राकृतगाथाओना प्राचीन प्रकरणग्रंथ ऊपर अनेक जैनाचार्योए व्याख्याओ अने विवरणो रच्यां छे, ते पैकी श्री जयसिंहसूरिनुं 'धर्मोपदेश माला-विवरण' सिंघी जैन ग्रंथमाला, मुंबईथी वि. सं. 2005 मां प्रगट थयेल छ। आ ग्रंथना 20 पृष्ठ 178-179 मांथी 'अर्ह अक्षरतत्त्वस्तव' नी संस्कृत भाषाना 23 अनुष्टुप् पद्योवाळी रचना अनुवाद साये अहीं प्रगट.करी छे। ___श्री जयसिंहसूरिए पोतानी कृतिना अंते 31 प्राकृत गाथाओमां प्रशस्ति आपेली छे, तेमां 28-29 मी गाथामां आ ग्रंथनी रचना वि० सं० 915 मां थयार्नु जणाव्यु छ। एटले आ स्तव पण ए समयनुं छे ए निर्विवाद छे। 25 आ स्तोत्रमा 'अर्ह' सुंदर वर्णन छ। एमां अ, र, ह अने बिंदुनी विशेषताओ सुंदर रीते दर्शाववामां आवी छे अने ए अक्षरोनी व्यापकतानुं पण सुंदर निरूपण छे। इतर दर्शनोमा रहेली नाद बिंदु, कला, लय वगेरेनी साधना आ 'अर्ह' माथी नीकळी छे, एम आ स्तोत्र कहे छ। अंतमां 'अहँ'ने मूर्तामूर्तादि विशेषणोथी वर्णववामां आवेल छ। स्तोत्रनी रचना काव्यनी दृष्टिए पण मनोहर छ।