________________ विभाग] 'धर्मोपदेशमाला'न्तर्गतः ‘अर्ह' अक्षरतत्त्वस्तवः यस्य देवाभिधानस्य मध्ये ह्येतद् व्यवस्थितम् / पुण्यं पवित्रं म(मा)ङ्गल्यं पूज्योऽसौ तत्त्वदर्शिभिः // 14 // 'ह' तत्त्वम सर्वेषामपि भूतानां नित्यं यो हृदि संस्थितः। पर्यन्ते सर्ववर्णानां सकलो निष्कलस्तथा // 15 // हकारो हि महाप्राणः लोकशास्त्रेषु पूजितः / विधिना मन्त्रिणा ध्यातः सर्वकार्यप्रसाधकः // 16 // यस्य देवाभिधानस्य पर्यन्त एष वर्तते / मुमुक्षुभिः सदा ध्येयः स देवो मुनिपुङ्गवैः॥१७॥ बिन्दु: सर्वेषामपि सत्त्वानां नासाग्रे परिसंस्थितम् / बिन्दुकं सर्ववर्णानां शिरसि सुव्यवस्थितम् // 18 // हकारोपरि यो बिन्दुर्वर्तुलो जलबिन्दुवत् / योगिभिश्चिन्तितस्तस्थौ मोक्षदः सर्वदेहिनाम् // 19 // त्रीण्यक्षराणि विन्दुश्च यस्य देवस्य नाम वै। स सर्वज्ञः समाख्यातः 'अर्ह' त इ(दि)ति पण्डितैः // 20 // .. पुण्य, पवित्र अने मंगल एवं आ तत्त्व जे परमात्मा (अह) ना नामनी मध्यमां रहेलं छे, ते परमात्मा तत्त्वदर्शिओने पूज्य छे // 14 // 'ह' तत्त्वजें वर्णन : सर्व प्राणीओना हृदयमां सदा रहेल, सर्व वर्णोनी अते रहेल, कलासहित, कलारहित अने 20 लौकिक शास्त्रोमा ' महाप्राण' तरीके पूजित (बहुमत) एवा 'ह'कार मंत्रधारकवडे जो विधिपूर्वक ध्यान कराय तो ते सर्व कार्योनो साधक छे // 15-16 // . जे देवना नामनी अंतमां आ ('ह'कार) रहे छे ते (अर्ह) देवनुं मुमुक्षु मुनिवरोए सदा ध्यान करवू जोईए // 17 // बिंदुनुं वर्णन : जे सर्व प्राणीओनी नासिकाना अप्रभागने विषे रहेल छे, जे सर्व वर्णोना मस्तके सुव्यवस्थित छे, जे 'ह'कार उपर जलबिंदुनी जेम वर्तुलाकारे रहेल छे अने जे योगीओवडे सदा चिन्तित छे, ते बिंदु सर्व जीवोने मोक्ष आपनार छे // 18-19 // त्रण अक्षरो अने बिंदु मळीने जे देवतुं नाम थाय छे ते देव पण्डितो वडे सर्वज्ञ परमात्मा अर्ह' (अरिहंत) कहेवाया छे // 20 // 25 ... -30