________________ विभाग] मायावीजस्तुतिः चतुरस्र त्रिकोणं वा, शान्तिकर्मणि युज्यते / अष्टाम्बुजं वर्तुलं च, काम्यकार्ये प्रशस्यते // 17 // मग्निं संवेश्य तत्रादौ, वरद नाम एव च / समिधः शोधयित्वा तु, आहूयेद् मन्त्रविश्रुतः // 18 // अग्निस्थापनमंत्र:-"ऊँ छागस्थ-तनुपाद् वरद एहि एहि आगच्छ आगच्छ हूं फट् स्वाहा" // इति // 5 क्षीरान-नालिकेरैश्च, द्राक्षयाऽगरुचन्दनैः।। शर्करा चोत्तती चैव, लवङ्घृतमिश्रितैः // 19 // प्रथमं गुग्गुलैः सार्ध, कलिं कणवीरस्य च / सम्मील्य घृतयुक्तेन, हवनं तत्र कारयेत् // 20 // शान्तिकं पौष्टिकं चैव, वश्यमाकर्षणं तथा / उच्चाटनं च स्तम्भं च, सर्वकर्माणि साधयेत् // 21 // चतुष्षष्टिमहादेव्यो, विख्याता भूतले सदा। ताः सर्वाः संस्थिता नित्यं, मायाबीजे वरे परे // 22 // एवं विधानमात्रेण, सर्वास्तुष्यन्ति देवताः / सुज्ञेयो योगिनां मुख्यो, नृपतुल्यो नरो भवेत् // 23 // विसर्जनं तु कर्तव्यं, मायाबीजेन सर्वदा / उमिति ह्रीं फट् स्वस्थानं, गम्यतां च स्वकं तथा // 24 // . 10 शांतिकर्म माटे चोरस अथवा त्रिकोण अने काम्यकर्म माटे आठ कमळवाळो (अष्टदलकमलाकार ?) अने वर्तुळाकार स्थंडिल प्रशस्त कहेल छे // 17 // . मांत्रिके सौथी प्रथम ते मांडलामां अग्नि पधराववो, ए पछी समिधोनुं शोधन करीने 'वरदं 'नाम 20 मंत्रथी (?) आहूति आपवी // 18 // अग्निस्थापनमंत्रः-“उ छागस्थ-तनुपाद् वरद एहि एहि आगच्छ आगच्छ हूं फट् स्वाहा॥" ___ खीर, नाळियेर, द्राक्ष, अगरु, चंदन, साकर, तज अने घीयी मिश्रित एवा लविंग ए बधाने प्रथम गूगळ साथे मेळवर्गा, पछी तेमां कणेरनी कळीओ मेळववी अने ए बधानो घीसहित होम कराववो // 19-20 // 25 . ए पछी मांत्रिके शांतिक, पौष्टिक, वश्य, आकर्षण, उच्चाटन, स्तंभन वगेरे सर्व कार्यो साधवां // 21 // समप्र विश्वमा सदा प्रसिद्ध एवी चोसठ योगिनी महादेवीओ छे, ते सर्वे आ उत्कृष्ट एवा मायाबीज ‘ह्री'कारमा सदा विराजमान छे // 22 // आ प्रकारना विधानमात्रथी बधा देवता संतुष्ट थाय छे / तेथी साधक ख्यातिमान थाय छ, 30 योगीओमा प्रधान योगी बने छे अने राजा समान ऐश्वर्यवाळो थाय छे // 23 // विसर्जन पण सर्वदा मायाबीज 'ही'कारथी (विसर्जनमुद्रापूर्वक) करवू / विसर्जनमंत्रः-"ह्रीं फट् स्वस्थानं गच्छ गच्छ (स्वाहा)॥" // 24 //