________________ [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय त्वां चिन्तयन् श्वेतकरानुकार, ज्योत्स्वामयीं पश्यति यत्रिलोकी(म्)। श्रयन्ति तं तत्क्षणतोऽनवद्यविद्याकलाशान्तिकपौष्टिकानि // 4 // त्वामेव बालारुणमण्डलाम, स्मृत्वा जगत् त्वत्करजालदीप्रम् / . विलोकते यः किल तस्य विश्वं, विश्वं भवेदू वश्यमवश्यमेव // 5 // यस्तप्तचामीकरचारुदीनं, पिङ्गप्रभ त्वां कलयेत् समन्तात् / सदा मुदा तस्य गृहे सहेलिं, करोति केलिं कमला चलाऽपि // 6 // यः श्यामलं कजलमेचकामं त्वां वीक्षते वा तुषधूमधूम्रम् / विपक्षपक्षः खलु तस्य वाताहताऽभ्रवद् यात्यचिरेण नाशम् // 7 // आधारकन्दोद्वततन्तुसुक्ष्मलक्ष्योद्भवं ब्रह्मसरोजवासम। यो ध्यायति त्वां स्रवदिन्दुबिम्बामृतं स च स्यात् कविसार्वभौमः // 8 // षड्दर्शनी स्वस्वमतावलेपैः स्वे दैवते त(त्व)न्मयबीजमेव / ध्यात्वा तदाराधनवैभवेन भवेदजेयः परवादिवृन्दैः // 9 // श्वेतवर्णी 'ही'कारना ध्यान- फळ चंद्रसमान उज्ज्वळ वर्णथी तारुं ध्यान करतो जे त्रणे लोकने प्रकाशमय जुए छे तेने निर्दोष 15 एवी विद्याओ, कलाओ तथा शांतिक अने पौष्टिक कर्मो तत्क्षण सिद्ध थाय छे. // 4 // रक्तवर्णी 'ही'कारना ध्यान- फळ ऊगता सूर्यना मंडल जेवी कांतिवाळा तने स्मरीने जे तारा किरणोना समूहथी देदीप्यमान जगतने जुए छे तेने खरेखर समग्र विश्व अवश्यमेव वश थाय छे. // 5 // पीतवर्णी 'ही'कारना ध्यान- फळ20 जे पीळी कांतिवाळा तने तप्तसुवर्णनी जेम सुंदर रीते सर्वतः प्रकाशमान जुए तेना घरमां चल एवी लक्ष्मी पण आनंद अने लीलासहित क्रीडा करे छे // 6 // श्यामवर्णी 'ही'कारना ध्यानचें फळ जे (साधक) काजळ के मेचकमणिसदृश श्यामवर्णरूपे अथवा फोतरांना धूमाडा जेवा धूम्रवर्ण रूपे तने जुए छे (तारं ध्यान धरे छे), तेनो शत्रुसमूह पवनयी विखेरायेलां वादळांनी जेम खरेखर क्षणवारमां 25 नाश पामे छे. // 7 // कुंडलिनीस्वरूपे ध्यानचें फळ जे मूलाधार कंद (चक्र)मांथी नीकळती तन्तुसमान सूक्ष्म सुषुम्णा-नाडीमा रहेलां लक्ष्यो (चक्रो)ने मेदीने उपर जता अने अंते सहस्रारकमलमां रहीने (स्थिर थईने) त्यां चंद्रना बिंबसमान अमृत झरावता तारुं ध्यान करे छे ते कविओमां चक्रवर्ती (श्रेष्ठ) थाय छे // 8 // 30 फलश्रुति ___षड्दर्शननो जाणकार पोताना इष्टदेवतामां 'ही'कार बीजनुं ध्यान करीने ते आराधनाना वैभवथी, पोतपोताना मतमां गर्विष्ट एवा वादीओना समूहोथी अजेय बने छे // 9 // 1. हेलं N. /