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________________ विभाग] मायाबीज(ह्रीकार)कल्पः पत्राष्टकैस्तु ह्रीकारं स्फाटिकं वर्णकोपरि (कर्णिकोपरि)। स्मरेदात्मानमत्रैवोपविष्टं धवलत्विषम् // 21 // चतुर्मुखं चतुर्भेदगतिविच्छेदकारकम् / / सर्वकर्मविनिर्मुक्तं सर्वसत्त्वाभयावहम् // 22 // निरञ्जनं निराबाधं सर्वव्यापारवर्जितम् / पद्मासनसमासीनं श्वेतवस्त्रविराजितम् // 23 // 'ही'कारेण शिरःस्थेन स्फाटिकेनोपशोभितम् / क्षरद्भिरमृतैर्माया(१) मायाबीजाक्षराङ्गकैः(जैः) // 24 // इति ध्यानमयो ध्याता सम्यक्संसारभेदकः। भवैस्त्रिभिश्चतुर्भिर्वा मोक्षमार्ग(१) च गच्छति // 25 // चतुर्विंशतितीर्थेशैभँनशक्त्या विभूषितः। परमेष्ठिमयश्चैष सिद्धचक्रमयो ह्ययम् // 26 // त्रयीमयो गुणमयः सर्वतीर्थमयो ह्ययम् / / पश्चभूतात्मको ह्येष लोकपालैरधिष्ठितः // 27 // 10 महासागर होय तेवी पृथ्वीने जुए। तेमां वच्चे अष्टदल कमल छे, दरेक दल उपर 'ही' कार के अने 15 वच्चे कर्णिकामां उज्ज्वल कांतिवाळो पोते पद्मासने बेठेल छे, एम चिंतवे / त्यां ते पोताने (समवसरणमां बेठेला श्री तीर्थकरनी जेम) चतुर्मुख, चारे गतिनो विच्छेद करनार, सर्व कर्मोथी रहित, पद्मासने बेठेल अने श्वेतवस्त्रोथी शोभतो जुए। ते पछी ब्रह्मरंध्रमा स्थापन करेला स्फटिक वर्णना 'ही' कारनी वच्चे विराजमान पोताना आत्माने जुए। ते पछी 'ही' कारना दरेक अंगमाथी झरता अमृतथी सिंचातो पोताना आत्माने चिंतवे // 19-24 // आ प्रकारे 'ही'कारना ध्यानमा परिणमेलो ध्याता संसारनो सारी रीते विच्छेद करनार थाय छे। ते त्रीजा अगर चोथा भवे मोक्षने अवश्य पामे छे // 25 // 'हाँ'कारने चोवीश तीर्थंकरोए जैनशक्तिथी (8) विभूषित करेल छ। ए. परमेष्ठिमय, श्रीसिद्धचक्रस्वरूप, त्रयी (देव-गुरु-धर्म)मय, ज्ञानदर्शनचारित्रगुणात्मक, सर्वतीर्थमय, पंचभूतात्मक अने लोकपालोथी 20
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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