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________________ [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय किं बहुक्तैर्निरालम्बं सितध्यानं करोत्यदः / सर्वपापक्षयं पुंसां नात्र कार्या विचारणा // 14 // मोहाकृष्टिवशाक्षोभमित्थं रक्तः करोत्ययम् / पीतः स्तम्भ रिपोर्वक्त्रबन्धं सम्यक् करोत्ययम् // 15 // नीलो विद्वेषणं चैवोच्चाहनं तु प्रयोगतः। कृष्णवर्णो गुरोर्वाक्यादरेर्मृत्युविधायकः // 16 // भ्रुवोर्मध्ये तु साध्यस्य चिन्तनीयो गुरुः क्रमात / गृहीतस्य च चन्द्रस्याकृष्टया प्राणप्रयोगतः // 17 // सालम्बाच निरालम्ब निरालम्बात् पराश्रयम् / ध्यानं ध्यायन् विलोमाञ्च साधकः सिद्धिमान् भवेत् // 18 // क्षीरपूर्णा महीं पश्येत् सितकल्लोलमालिनीम् / अवृक्षपर्वतामेकामर्णवात्माद्वितीयकाम् // 19 // बाध-संबाधरहितां, शान्तामानन्ददायिनीम् / चिन्तयेदेकमेवात्रामलं कुसुममुत्तमम् // 20 // 15 बहु कहेवाथी शुं ! आ 'ही'कारनुं बाह्य आलंबन रहित एवं निरालंबन श्वेत (शुक्ल !) ध्यान मनुष्यना सर्व पापनो क्षय करे छे, वळी विशिष्ट ध्यानना प्रयोगथी रक्तवर्णवाळो (आ मंत्रराज) सम्मोहन, आकर्षण, वशीकरण अने आक्षोभ करे छे, पीतवर्णवाळो स्तंभन अने शत्रु- मुख (वचन) बंध करे छे, नीलवर्णवाळो विद्वेषण अने उच्चाटन करे छे अने कृष्णवर्णवाळो शत्रुनुं मारण करे छ। ए निःसंदेह छे, एमां विचार (विकल्प) करवो नहीं. // 14-16 // 20 चंद्रनाडीद्वारा प्राणायमना प्रयोगपूर्वक प्रहण करायेल श्वासनो कुंभक करीने (साधके) साध्यना भ्रमध्यमां 'ही'कार क्रमे क्रमे मोटो चिंतववो (4) // 17 // __ सालंबन ध्यानमांथी निरालंबन ध्यान करवं, निरालंबन ध्यानमाथी पराश्रित ध्यान करतुं। ते पछी विलोमथी-उलटा क्रमथी (पराश्रितमाथी निरालंबन अने निरालंबनमांथी सालंबन) ध्यान करवू / ए रीते ध्यान करनार साधक सिद्धिने प्राप्त करे छे. // 18 // 25 (साधक) वृक्षो अने पर्वतो विनानी, बाधा अने संबाधाथी रहित (निरुपद्रव), शांत, आनंद आपनार, अद्वितीय, क्षीरथी परिपूर्ण, क्षीरना श्वेतकल्लोलना समूहथी शोभती अने जाणे केवळ एक क्षीरनो 1. सालंबन-बाह्यपट आदि आलंबनसहित ध्यान. निरालंबन-बाह्य आलंबन विना केवळ मनद्वारा 'ही'कारनी आकृतिनुं ध्यान. पराश्रित-'ही 'कारथी वाच्य एवा परमात्माना गुणादिनुं ध्यान.
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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