________________ विभाग] मायाबीज('ही'कार)कल्पः आम्नायदायकं नत्वा, दानैः सत्कृत्य तं गुरुम् / प्रतिष्ठाप्यः परो मन्त्रेणानेनैव विपश्चिता // 7 // सर्वमन्त्रमयत्वाच, सर्वदेवमयत्वतः / नान्यमन्त्रस्य संन्यासमयमर्हति तीर्थराट् // 8 // कृतस्नानेन सद्धर्म(ब्रह्म)चारिणा चैकभोजिना। साधकेन सदा भाव्यं, विजने भूमिशायिना // 9 // षट्कर्मणां विधानार्थ, जागर्ति यस्य मानसम् / प्रत्येकं पूर्वसेवायां, लक्षस्तेन विधीयते // 10 // सितश्रीखण्डलुलितः, सितवस्त्रः सिताशनः / सितसद्धथानजापस्रक्, सितजापाङ्गसंयुतः // 11 // सितपक्षे सुधाश्वेते, गृहे फलमय(मिद) भवेत् / विपद्ोगहतिं शान्ति, लक्ष्मी सौभाग्यमेव च // 12 // बन्धमोक्षं च कान्ति च, क्रमात् काव्यं नवं तथा / पुरक्षोभं सभाक्षोभमाज्ञैश्वर्यमभङ्गुरम् // 13 // __ आम्नाय आपनार गुरुने नमस्कार करीने अने उचित दानथी तेमनो सत्कार करीने विद्वान पुरुषे 15 आ ज ('ही 'कार) मंत्रथी श्रेष्ठ एवा 'ह्रीं 'कारनी प्रतिष्ठा कराववी // 7 // . . आ 'ही 'कार स्वयं तीर्थराज, सर्वमंत्रमय अने सर्वदेवमय होवाथी प्रतिष्ठा माटे कोई पण बीजा मंत्रोना न्यासनी एने अपेक्षा नथी // 8 // साधक सदा (उचित रीते) स्नान करनार, सद्धर्मने आचरनार, एक वखत भोजन करनार अने भूमिपर शयन करनार होवो जोईए। तेणे विजन (एकान्त) प्रदेशमां साधना करवी जोईए // 9 // 20 षट्कर्मना विधान माटे जेनु मन उत्साहित छे तेणे पूर्वसेवामा प्रत्येक कर्म माटे ('ऊँ ह्रीं / नमः' ए मंत्रनो) एक लाख वार जाप करवो जोईए // 10 // . साधके श्वेत चन्दनथी देहनुं विलेपन करवू / श्वेत वस्त्र, श्वेत (धान्यनु) भोजन, श्वेत (वर्णमां) ध्यान अने जाप माटे श्वेत माला एम जापर्नु प्रत्येक अंग पण श्वेत होवू जोईए // 11 // ___शुक्लपक्षमां कळीचूनाथी रंगेल श्वेत घरमा जाप करवाथी विपत्ति अने रोगोनो नाश, लक्ष्मी 25 अने सौभाग्यनी प्राप्ति, बंधनथी मुक्ति, नवीन काव्य, पुरक्षोभ अने सभाक्षोभ करवानी शक्ति अने आज्ञानुं चिरकालीन ऐश्वर्य वगेरे फळोनी प्राप्ति थाय छे / / 12-13 // .