________________ [48-3] श्रीजिनप्रभसरिविरचितः मायाबीज('ह्रीं कार)कल्पः मायानीजबृहत्कल्पात्, श्रीजिनप्रभसरिभिः। लोकानामुपकाराय, पूर्वविद्या प्रचक्ष्यते // 1 // सुप्रकाशे ताम्रमये, पट्टे मायाक्षरं गुरु। . कारितं परमात्मत्वममलं लभते स्फुटम् // 2 // ध्यानाश्रयो यथाम्नायं, शुभाशुभफलोदयः। तथाऽयं वर्णभेदेन, कार्यकाले प्रजायते // 3 // पूर्णायां सत्तिथौ शुक्लपक्षे चन्द्रबले तथा। कारयेत् सर्वेनैवेद्यं, पञ्चामृतसमन्वितम् // 4 // पक्वान्नान् विविधान् चान्यानानयेत् सुमनांसि च / सर्वैः कणैः फलैः सर्वैः, सर्वैर्वस्त्रैः क्रयाणकैः // 5 // सुवर्ण-रत्न-रूप्यैश्च, कर्पूरादिसुगन्धिभिः। प्रतिष्ठादिवसे पूज्यो, मन्त्रराजः शुभाशयैः॥६॥ अनुवाद आचार्य भगवान श्रीजिनप्रभसूरिवडे 'मायाबीजबृहत्कल्प'माथी लोकोना उपकार माटे पूर्वविद्या कहेवाय छे // 1 // जे सुप्रकाशित तांबाना पट उपर मोटो 'ही'कार करावे ते निर्मल एवा परमात्मपणाने 20 निश्चयथी पामे छे (1) // 2 // कार्यकाले आम्नायने अनुसारे (विधिपूर्वक) जुदा जुदा वर्णोथी ध्यान करातो आ (मंत्रराज) शुभाशुभ फलना (2) उदयने करनारो थाय छे // 3 // शुक्लपक्षनी शुभ एवी पूर्णा (5, 10, 15) तिथिओमां तेमज उत्तम प्रकारना चंद्रबलमा पंचामृतथी सहित सर्व प्रकार- नैवेद्य, विविध प्रकारना पक्वान्नो कराववां तथा सुंदर पुष्पो मंगाववां ते सर्व 25 वडे, अने सर्व धान्यो वडे, सर्वफळो वडे, सर्ववस्त्रो वडे, सर्वक्रयाणको वडे (4), सोनू, रत्न अने चांदी वडे, कपूर वगेरे सुगंधी द्रव्यो वडे प्रतिष्ठाना दिवसे शुभ आशयोसहित मन्त्रराज 'ही'कारनी पूजा करवी // 4-6 // 1 दूध, दही, घी, साकर (इक्षुरस) अने गंधोदके (केसर, कपूर वगेरे सुगंधी द्रव्योथी मिश्रित जल) ने पंचामृत कहेवाय छे.