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________________ विभाग] ''कारविद्यास्तवनम् परिचय आ स्तोत्र 'पंचनमस्कृतिदीपक' नामक ग्रंथमां संग्रहीत छे अने तेमां तेनो दिगंबर जैनाचार्य 'पूज्यपाद' (अपरनाम श्री समंतभद्रसूरि) नी कृतिरूपे उल्लेख थयो छे। ए स्तोत्रने अहीं अनुवाद साथे प्रगट कर्यु छ। श्रीपंचपरमेष्ठिओनो वाचक आ 'ऊँ'कार 'अ+अ+आ+उ+म्' ए वर्णोना योगथी बनेलोड छे। तेनुं वर्णन आ स्तोत्रमा करेलुं छे। ''कारना ध्यान विशे अने तेना फळ विशेनी माहिती आ स्तोत्रमा आपेल छ। आ स्तोत्र 'ऊँ'कारनी व्यापकतानो सुंदर रीते ख्याल करावे छे। जॅकार परमेष्ठिभगवंतोनो एकाक्षरी मंत्र होवाथी आ ''कार-स्तवनने अहीं प्रकट कयु छ। एक जैन 'बीजकोश'कारे 'अँ'कारने आत्मवाचक मूलभूत बीज बताव्युं छे। एने 10 तेजोबीज, कामबीज पण मानवामां आव्यु छ। पंचपरमेष्ठिनो वाचक होवाथी 'उ'कारने समस्त मंत्रोनुं सारतत्त्व कहेवामां आवे छे। मात्र 'ऊँ'नो जप अथवा चिंतन करवायी आत्मा निर्मल बने छे अने स्वानुभव थवा लागे छे। आ स्तोत्रनो पाठ अनेक रीते फलदायक छ।
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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