________________ नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत श्वेते शान्तिक-पुष्टयाख्याऽनवद्यादिकराय च। पीते लक्ष्मीकरायापि 'ऊँ'काराय नमो नमः // 7 // रक्त वश्यकरायापि कृष्णे शत्रुक्षयकृते / धूम्रवर्णे स्तम्भनाय 'ऊँ'काराय नमो नमः // 8 // ब्रह्मा विष्णुः शिवो देवो गणेशो वासवस्तथा। . सूर्यश्चन्द्रस्त्वमेवातः 'ऊँ'काराय नमो नमः॥९॥ न जपो न तपो दानं न व्रतं संयमो न च। सर्वेषां मूलहेतुस्त्वं 'ऊँ'काराय नमो नमः // 10 // इति स्तोत्रं जपन् वाऽपि पठन् विद्यामिमां पाम् / स्वर्ग मोक्षं पदं धत्ते विद्येयं फलदायिनी // 11 // करोति मानवं विज्ञमज्ञं मानविवर्जितम् / समानं स्यात् पंचसुगुरोविथैका सुखदा परा // 12 // // इति उकारविद्यास्तवनम् // जे श्वेतवर्णथी ध्यान करतां निर्दोष एवां शांति, तुष्टि, पुष्टि वगेरे कार्यों करे छे अने पीतवर्णथी 15ध्यान करतां लक्ष्मी आपे छे ते 'ऊँ'कारने वारंवार नमस्कार थाओ। जे लालवर्णयी ध्यान करतां वशी करण करे छे, कृष्णवर्णथी ध्यान करतां शत्रुनो क्षय करे छे अने धूम्रवर्णथी ध्यान करतां स्तम्भन करे छे ते 'ऊँ'कारने वारंवार नमस्कार थाओ // 7-8 // हे प्रणव! तुं ज ब्रह्मा छे, तुं ज विष्णु छे, तुं ज शिव देव छे, तुं ज गणेश छे, तुं ज इंद्र छे, तुं ज सूर्य छे अने चंद्र पण तुं ज छे; तेथी तने वारंवार नमस्कार थाओ // 9 // 20 सर्व सिद्धिओ (सुखो) मुं. मूळ कारण जप नथी, तप नथी, दान नथी, व्रत नथी अने संयम पण नथी'; किन्तु हे प्रणव ! तुं छे। तने वारंवार नमस्कार थाओ // 10 // आ स्तोत्रने जपतो अथवा आ परम विद्यानो पाठ करतो मनुष्य स्वर्ग अथवा मोक्षनी पदवी पामे छे / आ 'उ'कार विद्या (श्रेष्ठ) फळने आपनारी छे // 11 // ए अज्ञान मनुष्यने विद्वान करे छ। एनाथी मानविनानो पुरुष मानवाळो (लोकप्रिय) थाय छ। 25 पंचसुगुरुओना प्रथमाक्षरोमांथी निष्पन्न थएली आ विद्या अद्वितीय अने परम सुखदायक छ // 12 // 1. अहीं जपादिनी हीनता बतावाई नथी किन्तु 'ॐ'कारनी श्रेष्ठता बताववा माटे जपादिने गौणता आपवामां आवी छ। 2. अहीं छंदोभंग दोष लागे छे.