________________ [47-2] 'ॐ'कारविद्यास्तवनम् प्रणवस्त्वं ! परब्रह्मन् ! लोकनाथ ! जिनेश्वर ! कामदस्त्वं मोक्षदस्त्वं 'ऊँ'काराय नमो नमः // 1 // पीतवर्णः श्वेतवर्णो रक्तवर्णो हरिद्वरः। कृष्णवर्णो मतो देवः 'ॐकाराय नमो नमः॥२॥ नमत्रिभुवनेशाय रजोपोहाय भावतः। . पञ्चदेय शुद्धाय 'ऊँ'काराय नमो नमः॥३॥ मायादये नमोऽन्ताय प्रणवान्तर्मयाय च। बीजराजाय हे देव ! 'काराय नमो नमः // 4 // घनान्धकारनाशाय चरते गगनेऽपि च। ... तालुरन्ध्रसमायाते सप्रान्ताय नमो नमः // 5 // गर्जन्तं मुखरन्ध्रेण ललाटान्तरसंस्थितम् / पिधानं कर्णरन्ध्रेण प्रणवं तं वयं नुमः // 6 // 20 अनुवाद ..... 15 ... हे परमब्रह्म, लोकनाथ, जिनेश्वर ! तमे प्रणव ('उ'कार) स्वरूप छो। हे 'ॐ' कार ! तुं सर्व शुभ इच्छाओने पूर्ण करनार छे अने मोक्ष आपनार पण तुं ज छे; तेथी हुँ तने पुनः पुनः नमस्कार करुं छं // 1 // जे (इष्ट) देव ('ॐ'कार)नु ध्यान पीतवर्णमां, श्वेतवर्णमा, रक्तवर्णमा, हरितवर्णमां अथवा कृष्णवर्णमां कराय छे, ते 'ऊँ'कारने वारंवार नमस्कार थाओ // 2 // जे त्रणे भुवननो स्वामी छे, जेनुं भावपूर्वक ध्यान करतां रज-कर्मनो नाश थाय छे, जे पंचदेव (पंचपरमेष्ठि) मय छे अने जे शुद्ध छे एवा 'उ'कारने वारंवार नमस्कार थाओ // 3 // हे देव ! जे माया एटले 'ह्रीं'कारनी आदिमां छे, जेना अंतमां नमः छे, जे सर्व बीजोमां अंतर्गत छे-व्याप्त छे अने जे बीजराज छे एवा प्रणवस्वरूप ''कारने नमस्कार थाओ // 4 // मंत्र- 'ॐ ह्री नमः 25 ' (अज्ञानरूप) गाढ अंधकारनो नाश करवा माटे गगनमां संचरता अने त्यांथी तालुरंध्रमा आवता 'स्'नी नजीकमां रहेला 'ह'कारने (?) (''कारने) वारंवार नमस्कार थाओ // 5 // _वळी मुखरंध्रमां गर्जता, ललाटना मध्यमां स्थिर थता अने कर्णरंधथी ढंकाता (?) एवा ते प्रणव''कारने अमे वारंवार नमस्कार करीए छीए // 6 // .