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________________ [संस्कृत 324 नमस्कार स्वाध्याय अक्षरना मन्त्रने पांचसो वार जाप करनार उपवास- फल मेळवे छे / " आ फल जापमा जीवनी सत्प्रवृत्ति थाय ए माटे ज जणावेल छे, बाकी तो वास्तविक रीते नवकारना जपर्नु फल स्वर्ग अने मोक्ष छे। ते उपरांत 'असिआउसा नमः' ने अंगे जणाव्युं छे के 'अ' नामिकमलने विषे, 'सि' मस्तकने विषे, 'आ' मुखकमलमां, 'उ' हृदयकमलमा अने 'सा' कंठने विषे स्थापीने पण ध्यान करतुं / आ उपरांत सर्वकल्याण5 कर एवा 'नमः सिद्धेभ्यः' वगेरे बीजा मंत्रोनुं पण स्मरण करी चित्तनी एकाग्रता करवी। ऐहिक फलनी इच्छावाळा पुरुषोए 'ॐ नमो अरिहंताणं' इत्यादि ॐकारपूर्वक आ नवकार मन्त्र गणवो / पण जेमने केवल निर्वाणपद-मोक्षपद प्राप्तिनी ज कामना होय तेओए ॐकार रहित नवकारर्नु ध्यान करवू / आवी रीते वर्ण, पद वगेरे जुदा जुदा पाडी अरिहंतादिकना ध्यानमा लीन थवा माटे अनेक रीतिओ क्रमशः योजवी / जापादिक बहु फलने आपनारां छे / कयुं छे के: 'क्रोडो पूजा समान एक स्तोत्र छे, क्रोडो स्तोत्र समान एक जाप छे, क्रोडो जाप सरखं एक ध्यान छे अने क्रोडो ध्यान समान एक लय एटले चित्तनी एकाग्रता छ / ' ध्याननां स्थल अने कालादिकनी विचार ध्याननी सिद्धि माटे जिनेश्वर भगवंतोना जन्म वगेरे कल्याणकनी भूमिओ, तीर्थस्थानों तेम ज पवित्र तथा एकान्त स्थलनो साधके उपयोग करवो जोईए / ते माटे ध्यानशतकमा कयुं छे के :-"स्त्री, 15 पशु, नपुंसक तथा कुशील (वेश्यादि) थी रहित मुनिनुं स्थान होवू जोईए अने ध्यान अवस्थामां पण 10 कायाना योग स्थिर कर्या होय अने ध्यानमा निश्चल रही शकता होय तेवा मुनिओ तो गमे तेवा माणसोथी भरपूर लत्तामा, रणमा, अरण्यमा, श्मशानमां के शून्य स्थलमां एक सरखी रीते चित्तनी स्थिरता केळवी शके छ / आथी ज्यां मन, वचन अने कायानी स्थिरता रहे अने कोई पण जीवने पोतानाथी हरकत न थाय 20 तेवू स्थान ध्यान माटे योग्य छ / जेवी रीते स्थान माटे कयुं तेवी ज रीते काल माटे पण जाणवू / जे समये मन, वचन, कायाना योग उत्तम समाधिमा रहेता होय ते समये ध्यान करवू / ध्यान माटे रात्रि के दिवसनो कोई जातनो कालमेद नथी / साधके एटलं खास विचारवं के जे समय पोताना देहने पीडाकारी न होय, ते समय ध्यान माटे योग्य समजवो। ध्यान पद्मासने करवं, उभा रहीने करवू, बेसीने करवू के कई रीते करवू तेनो पण खास नियम नथी / कारण के सर्व काळमां, सर्व देशमा अने भिन्न भिन्न सर्व 25 अवस्थामा साधक मुनिओ केवलज्ञान पाम्या छेमाठे ध्यानना संबंधमां देशनो, कालनो अने देहनी अवस्थानो कोई पण नियम सिद्धान्तमा कह्यो नथी / अर्थात् मन, वचन अने कायाना योग समाधिमां रहे तेवो प्रयत्न करवो जोईए। दरेक अवस्थामां नवकारनी उपकारकता ____नवकार मंत्र- स्मरण आ लोक अने परलोक बन्नेमा घणुं ज उपकारक छ / महानिशीथ 30 सूत्रमा कयुं छे के–'नवकार मन्त्रनुं भावथी चिंतन कर्यु होय तो चोर, जंगली प्राणी, सर्प, पाणी, अग्नि, बंधन, राक्षस, संग्राम अने राजानो भय नाश पामे छे। तेम ज अन्य ग्रंथोमां पण कडुं छे के:-बालकनो जन्म थाय त्यारे नवकार गणवो, कारण के तेथी उत्पन्न थनार जीवने भविष्यमां सारा फलनी प्राप्ति थाय, अने मरण समये पण तेने नवकार संभळाववो, जे संभळाववाथी शुभ अध्यवसाय थतां सद्गति मळे। आपत्तिओमां नवकार गणवाथी आपत्तिओ नाश पामे छे। ऋद्धि-सिद्धिना 35 प्रसंगमा पण हरहमेश नवकार-मंत्रनुं स्मरण करवू / तेथी ऋद्धि स्थिर रहेवा पूर्वक वृद्धि पामे छ।'
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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