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________________ विभाग] 'श्राद्धविधि' प्रकरणान्तर्गतसन्दर्भः ....... 323 मन्त्र गणे। (1) तेमां कल्पित आठ पत्रवाळा कमळनी कर्णिकामा प्रथम पद स्थापन करवू / पूर्व, दक्षिण, पश्चिम तथा उत्तर दिशाना दळ उपर अनुक्रमे बीजं, त्रीजुं चोथु अने पांचमुं पद स्थापन करवू अने नैर्ऋत्य, वायव्य, अग्नि अने ईशान ए चार कोण दिशामां बाकी रहेला चार पद अनुक्रमे स्थापन करवां / श्रीहेमचन्द्रसूरिजीए योगशास्त्रना आठमा प्रकाशमां कयुं छे के "आठ पाखंडीना श्वेतकमलनी कर्णिकाने विषे चित्त स्थिर राखीने त्यां पवित्र सात अक्षरनो मंत्र-'नमो अरिहंताणं' नुं चितवन करवू / 5 पूर्वादि चार दिशानी चार पांखडीने विषे अनुक्रमे सिद्धादि चार पदनुं अने विदिशाने विषे बाकीना चार पदनुं चितवन करवू / मन, वचन अने कायानी शुद्धिथी जो ए रीते एकसो आठ वार मौन राखीने नवकारर्नु चितवन करे, तो तेने भोजन करवा छतां पण उपवासनुं फल अवश्य मळे छे।" नंद्यावर्त, शंखावर्त इत्यादि प्रकारथी हस्तजप करे तो पण इष्टसिद्धि आदिक घणा फलनी प्राप्ति थाय छे। कां छे के-“जे भव्य हस्तजपने विषे नंद्यावर्त बार संख्याए नव वार एटले हाथं उपर फरतां रहेलां बार स्थानक (वेढाओ) 10 ने विषे नव वखत अर्थात् एक सो ने आठ वार नवकार मन्त्र जपे, तेने पिशाचादि व्यन्तरो उपद्रव करे नहीं / बंधनादि संकट होय तो विपरीत (उलटा) शंखावर्त्तथी अक्षरोना के पदोना विपरीत क्रमथी नवकार मंत्रनो लक्षादि संख्या सुधी पण जप करवो, जेथी क्लेशनो नाश वगेरे तरत ज थाय। उपर कहेलो कमळबंध जप अथवा हस्तजप करवानी शक्ति न होय तो, सूत्र, रत्न, रुद्राक्ष इत्यादिकनी नोकारवाली पोताना हृदयनी समश्रेणिमा राखी पहेरेला वस्त्रने के पगने स्पर्श करे नहि, एवी 15 रीते धारण करवी अने मेरुनु उल्लंघन न करतां विधि प्रमाणे जप करवो। केम के—"अंगुलिना अप्रभागथी, व्यग्र चित्तथी तथा मेरुना उल्लंघनथी करेलो जप प्रायः अल्प फलने आपनारो थाय छे। लोकसमुदायमां * जप करवा करतां एकान्तमा जप करवो ते, मन्त्राक्षरनो उच्चार करीने करवा करतां मौनपणे करवो ते अने मौनपणे करवा करतां पण मननी अंदर करवो ते श्रेष्ठ छे।” ए त्रणे जपमा पहेलां करता बीजो अने बीजां करतां त्रीजो श्रेष्ठ जाणवो / “जप करता थाकी जाय तो ध्यान करवू अने ध्यान करता थाकी 20 जाय तो जप करवो तेमज बनेथी थाकी जाय तो स्तोत्रनो पाठ करवो एम गुरुमहाराजे कयुं छे।" ... श्रीपादलिप्तसूरिजीए रचेली प्रतिष्ठापद्धतिमां पण कर्तुं छे के:-"मानस, उपांशु अने भाष्य एम जापना त्रंण प्रकार छ। केवल मनोवृत्तिथी उत्पन्न थयेलो अने मात्र पोते ज जाणी शके तेने मानसजाप कहे छे। बीजी व्यक्ति सांभळे नही तेवी रीते मनमा बोलवा पूर्वक जे जाप. करवामां आवे तेने उपांशु जाप कहे छे। तथा बीजा सांभळी शके तेवी रीते जाप करवामां आवे तेने भाष्यजाप 25 कहेवामां आवे छे / पहेलो मानस जाप शान्ति वगेरे उत्तम कार्यों माटे, बीजो उपांशु जाप पुष्टि वगेरे मध्यम कोटिना कामोने माटे अने त्रीजो भाष्य जाप जारण, मारण वगेरे अधम कोटिना कार्यो माटे साधक तेनो उपयोग करे छे / मानस जाप अति प्रयत्नवडे साध्य छे अने भाष्य जाप हलका फलने आपनारो छे, तेयी सौने माटे साधारण एवा उपांशु जापनो उपयोग करवो जोईए। .. नवकारना सोळ, छ, चार अने एक अक्षरनो विचार 30 चित्तनी एकाग्रता माटे साधके नवकारनां पांच अथवा नव पदोने अनानुपूर्वीथी पण गणवां जोईए अने साधक तो त्यांसुधी करे के नवकारना प्रत्येक पद अने अक्षरने पण फेरवीने गणे / योगशास्त्रना आठमा प्रकाशमां कर्तुं छे के:-"अरिहंत-सिद्ध-आयरिअ-उवज्शाय-साहु" ए पंच परमेष्ठिना नामरूप सोळ अक्षरनी विद्यानो बसो वार जाप करे तो उपवासर्नु फल मळे, तेम ज 'अरिहंत-सिद्ध' एछ अक्षरनो मंत्र त्रणसो वार, 'अरिहंत' ए चार अक्षरनो मंत्र चारसो वार अने 'अ' ए एक 35
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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