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________________ 322 . नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत क्रूर तथा अस्थिरादि कार्यने विषे अग्नि, वायु अने आकाश ए त्रण तत्त्वोथी सारुं फल थाय छ / आयुष्य, जय, लाभ, धान्यनी उत्पत्ति, वृष्टि, पुत्र, संग्राम, प्रश्न, जq अने आवq एटला कार्यमां पृथ्वीतत्त्व अने जलतत्त्व शुभ छे, अग्नितत्त्व अने वायुतत्त्व शुभ नथी। पृथ्वीतत्त्व होय तो कार्यसिद्धि धीरे धीरे अने जलतत्त्व होय तो तरत ज जाणवी।" 5 चन्द्र-सूर्य-नाडी वहे त्यारे क्या करवा योग्य कार्यों छे ? ___पूजा, द्रव्योपार्जन, विवाह, किल्लादिनुं अथवा नदीनुं उल्लंघन, जवं, आवq, जीवित, घर-क्षेत्र इत्यादिकनो संग्रह, खरीदवू, वेचवू, वृष्टि, राजादिकनी सेवा, खेती, शत्रुनो जय, विद्या, पट्टाभिषेक इत्यादि शुभ कार्यमां चन्द्रनाडी वहेती होय तो शुभ छे। तेम ज कोई कार्यनो प्रश्न अथवा कार्यनो आरंभ करवाने समये डाबी नासिका वायुथी पूर्ण होय, अथवा तेनी अंदर वायु प्रवेश करतो होय, तो निश्चे कार्यसिद्धि 10 थाय / " बंधनमा पडेला, रोगी, पोताना अधिकारथी भ्रष्ट थयेला पुरुषोना प्रश्न, संग्राम, शत्रुनो. मेलाप, सहसा आवेलो भय, स्नान, पान, भोजन, गई वस्तुनी शोधखोळ, पुत्रने अर्थे स्त्रीनो संयोग, विवाद तथा कोई पण क्रूर कर्म एटली वस्तुमा सूर्यनाडी सारी छे।" सूर्य तथा चन्द्र बन्ने नाडीमां करवा योग्य विशिष्ट कार्यो कोई ठेकाणे एम कहेल छे के “विद्यानो आरंभ, दीक्षा, शास्त्रनो अभ्यास, विवाद, राजानुं दर्शन, 15 गीत इत्यादि तथा मन्त्रंयन्त्रादिकनुं साधन एटला कार्यमा सूर्यनाडी शुभ छे। जमणी अथवा डाबी जे नासिकामां प्राणवायु एकसरखो चालतो होय, ते बाजुनो पग आगळ मूकीने पोताना घरमाथी बहार नीकळवू / सुख, लाभ अने जयना अर्थी पुरुषोए पोताना देवादार, शत्रु, चोर, झगडाखोर इत्यादिकने पोताना शून्यांगे (डाबी बाजू ?) राखवा / कार्यसिद्धिनी इच्छा करनार पुरुषोए स्वजनं, पोतानो स्वामी, गुरु तथा बीजा पोताना हितचिंतक ए सर्व लोकोने पोतानां जीवांगे (जमणी बाज !) राखबा / पुरुषे बिछाना 20 उपरथी ऊठतां जे नासिका पवनना:प्रवेशथी परिपूर्ण होय, ते नासिकाना भागनों पंग प्रथम भूमि उपर मूकवो।" नवकार गणवानो विधि __ श्रावके उपर्युक्त विधिथी निद्रानो त्याग करीने परम मंगलने अर्थे अत्यंत बहुमानपूर्वक नवकार मंत्रना वर्णोनुं कोई न सांभळे एवी रीते (मनमा) स्मरण करई / कयु छ के:-'शय्यामां रह्या रह्या 25 नवकार गंणवो होय तो, सूत्रनो अविनय निवारवाने माटे मनमां ज गणवो।' बीजा आचार्यो तो एम कहे छे के--‘एवी कोई पण अवस्था नथी के जेनी अंदर नवकार मन्त्र गणवानो अधिकार न होय, एम मानीने "नवकार हमेश माफक गणवो। आ बन्ने मतो प्रथम पंचाशकनी वृत्तिमा कह्या छ / श्राद्धदिनकृत्यमां तो एम का छे के 'शय्यानुं स्थानक मूकीने नीचे भूमि उपर बेसी भावबंधु तथा जगतना नाथ नवकार मंत्रनुं स्मरण करवू / ' यतिदिनचर्यामां आ रीते कर्तुं छे के, 'रात्रिने पाछले 30 पहोरे बाल, वृद्ध इत्यादि सर्व साधुओ जागे छे अने सात आठ वार नवकार मंत्र गणे छे / ' एवी रीते नवकार गणवानो विधि जाणवो। जपना प्रकार-कमलबंधजप, हस्तेजप वगेरे निद्रा करीने उठेलो पुरुष मनमा नवकार गणतो शय्यानो त्याग करे, पवित्र भूमि उपर उभो रही अथवा पद्मासन के सुखासने बेसी पूर्व दिशाए के उत्तर दिशाए मुख करी अथवा जिनप्रतिमा के 35 स्थापनाचार्य संमुख चित्तनी एकाग्रता वगेरे करवाने अर्थे (1) कमलबंधथी अथवा (2) हस्तजपथी नवकार
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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