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________________ विभाग] 'श्राविधि'प्रकरणान्तर्गतसन्दर्भः 325 नवकार गणवाथी केटलुं पाप खपे तेनो विचार शास्त्रमा जणाव्युं छे के नवकारनो एक अक्षर गणवाथी सात सागरोपमनु पाप खपे, तेनुं एक पद गणवामां आवे तो पचास सागरोपमनु पाप ओछु थाय / तेम ज एक संपूर्ण नवकार पांचसो सागरोपमनुं पाप खपावे। जे भव्य जीव विधिपूर्वक श्रीजिनेश्वर भगवंतनी पूजा करीने एक लाख नवकार मन्त्र गणे तो ते शंका रहित तीर्थकर नामकर्म बांधे छ। जे जी। आठ कोड, आठ लाख, आठ हजार, आठ सो अने आठ 5 (80808808) वार नवकार मन्त्र गणे ते त्रीजे भवे मुक्ति पामे छे। नवकार स्मरणधी आ लोक अने परलोक फल संबन्धी दृष्टान्त नवकार माहात्म्य उपर आ लोकना फल संबन्धमां श्रेष्ठिपुत्रक शिवकुमारनुं दृष्टान्तः 'शिवकुमार जुगटुं वगेरे रमवाथी भयंकर दुर्व्यसनी बन्यो हतो तेथी, पिताए तेने शिखामण आपी के ज्यारे तुं कोई भयङ्कर मुश्केलीमा आवी पडे त्यारे नवकार मन्त्र गणजे। समय जतां पिता 10 मृत्यु पाम्या। शिवकुमार धन खोई बेठो, अने धननी लालचे कोई सुवर्ण पुरुष साधतां त्रिदंडीनो उत्तर साधक थयो। अंधारी चौदसनी रात्रिए श्मशानमा त्रिदंडीए तेने शबना पग घसवानुं काम भळाव्यं। त्रिदंडीनी गोठवण एवी हती के शब मंत्रविधि पूर्ण थये उत्तर साधकने हणे अने तेमांथी सुवर्णपुरुष थाय, ते मेलवी अखण्ड सुवर्ण निधान प्राप्त कर। शबनो पग घसता शिवकुमारना मनमां भयनो संचार थयो। तेने पितानं वचन याद आव्यं, आथी तेणे मनमां नवकार मंत्रनो जाप शरु 15 कर्यो। शब उभु थयुं पण उत्तरसाधकने नवकार मंत्रनी शक्तिना प्रतापे हणी शक्युं नहि। शबे क्रोधित थई त्रिदंडीने हण्यो अने तेमांथी सुवर्णपुरुष थयो, आ सुवर्णपुरुष शिवकुमारे ग्रहण कर्यो / त्यार पछी शिवकुमार सुधरी गयो, धर्ममां स्थिर थयो अने तेणे लक्ष्मीनो उपयोग जिनमंदिर बंधाववा वगेरे सारा कार्यमां कर्यो।' .. .. : परलोकना फल संबंधमा वड उपर रहेल समळीनुं दृष्टान्त छे-'सिंहलाधिपति राजानी पुत्री 20 पिता.साथे सभामां बेठी हती, तेवामा एक पुरुषने सभामां छींक आवी। छींक पछी तुर्त ते पुरुषे 'नमो अरिहंताणं' कड्यं / आ पद सांभळता राजकुमारीने मूर्छा आवी बने तेने जातिस्मरण शान थयु / मूर्छा वळ्या पछी राजकुमारीए पिताने पोताना पूर्व भवनी वात कही अने जणाव्यु के हुँ पूर्वभवमा समळी हती। एक पारधीए मने बाण मायु / हुँ मूर्छा खाईने नीचे पडी तरफडती हती तेवामा एक मुनिराजे मने नवकार मंत्रनं स्मरण कराव्यु। आ स्मरणथी हुं आपने ध्यां पुत्रीरूपे अवतरी छ। स्यारपछी राजकुमारी पचास 25 वहाण भरी पोताना समळीपणानो देह ज्या आगल पब्यो हतो ते भरुचमां भावी बने त्यां समलिकाविहार कराव्यो। ... - आ रीते उठतां नवकार मन्त्र गणवो जोईए तेनी व्याख्या थई / धर्मजागरिका - नवकारमन्त्रना स्मरण पछी धर्मजागरिका करवी। 1 नारकीनो जीव सात सागरोपम प्रमाण काळमां दुःख भोगवीने जेटलां पापकर्मों खपावे, तेटलुं पाप नवकारना एक अक्षरना स्मरणथी खपे।
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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