________________ विभाग] 'श्राविधि' प्रकरणातसन्दर्भः 319 ध्यानसिद्धयेच जिनजन्मादिकल्याणकभूम्यादिनपं तीर्थमन्यद्वा स्वास्थ्यहेतुं विविक्तं स्थानाधाश्रयेत् / यद् ध्यानशतके "नि चिअ जुवापसूनपुंसगकुसीलवज्जियं जाणो / ठाणं विअणं भणि, विसेसमोसाणकालंमि // 1 // थिरकयजोगाणं पुण, मुणीण झाणेसु निश्चलमणाणं / गामंमि जणाइने, सुने रने वन विसेसो॥२॥ तो जत्य समाहाणं, होह मगोवयणकायजोगाणं / भूओवरोहरहिमओ, सो देसो सायमाणस्स // 3 // . कालो वि सुच्चिा जहिं, जोगसमाहाणमुत्तमं लहइ / नउ दिवसनिसावेलाइनियमणं झाइणो भणिभं // 4 // जच्चिा देहावत्था, जिआण झणोवरोहिणी होइ। साइज्जा तदवत्थो, ठिओ निसनो निवन्नो वा // 5 // सब्बासु वट्टमाणा, मुणओ जं देसकालचिट्ठासु। परकेवलाइलामं, पत्ता बहुसो समिअपावा // 6 // तो देसकालचिदा, निमोझाणस्स नत्थि समयंमि / जोगाण समाहाणं, जह होइ तहा पयहअव्वं // 7 // इत्यादि। नमस्कारश्चात्रामुषाप्यत्यन्तं गुणकृत् / उक्त हि महानिशीथे "नासेर चोरसावय-, विसहरजलजलणबंधणभयाई। . चितिजंतो रक्खस-रणरायभयाई भावेण // 1 // " अन्यत्रापि "जाए वि जो पढिजइ, जेणं जायस्य होई फलरिद्धि / अवसाणे वि पढिज्जा , जेण ममओ सुग्गरं जाइ // 1 // आवाहिपि पढिज्जा, जेण य लंद आवासयाई। रिद्धीए वि पढिज्जइ, जेण य सा जाइ वित्थारं // 2 // .... नवकाराकसक्खर, पावं फेडेर सत्त अपराणं। पत्रासंच पपणं, पञ्चसयाई समग्गेणं // 3 // जो गुणा लक्समेग, पूर विहीर जिणनमुकार / तित्थयरनामगो, सो बन्धा नत्थि संदेहो॥४॥ अट्टेवय अटुसया, अटुसहस्सं च अटुकोडीओ। जो गुणा अट्टलक्खे, सो तामभवे लहइ सिद्धिं // 5 // " नमस्कारमाहात्म्ये इह लोके श्रेष्ठिपुत्रशिवादयो दृष्टान्ताः यथा-स छूतावासको 'विषमे नमस्कारं स्मरेरिति' पित्रा शिक्षितः पितरि मृते व्यसननिर्धनो धनार्थी दुष्टभिदण्डिगिरोत्तरसाधकीभूतः कृष्णचतुर्दशीरात्रौ श्मशाने खड्गपाणिः शवस्याङ्ग्री म्रक्षयन् भीतो नमस्कार सस्मार। विरुत्थितेनापि शवेन तं प्रत्यप्रभूष्णुना त्रिदण्डयेव हतः स्वर्णनरः सिद्धस्तस्य ततो महर्चिः शिवचैत्याधचीकरत्, इत्यादि / 35 परलोके तु क्टशमलिकादयः, यथा सा म्लेच्छवाणविद्धा साधुदत्तनमस्कारात्सिंहलेशस्य मान्यपुत्रीत्वेनोत्पन्ना क्षुतसमयमहेभ्योतनमस्काराद्यपदभुतेर्जातिस्मरा पञ्चशस्या पोतैरागत्य भृगुपुरे शमलिकाबिहारोद्धारमकारयदित्यादि / तस्मात् सुप्तोत्थितेन पूर्व नमस्कारः स्मर्तव्यस्ततो धर्मजागर्या कार्या।