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________________ 310 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय - आचार्यभक्तिः सिद्धगुणस्तुतिनिरतानुद्भूतरुषामिजालबहुलविशेषान् / गुप्तिभिरभिसम्पूर्णान् , मु(यु)क्तियुतसत्यवचनलक्षितभावान् // 1 // मुनिमाहात्म्यविशेषान् , जिनशासनसत्प्रदीपमासुरमूर्तीन् / सिद्धिं प्रपित्सुमनसो, बद्धरजोविपुलमूलघातनकुशलान् // 2 // . गुणमणिविरचितवपुषः, षड्द्रव्यनिश्चितस्य धातृन सततं / रहितप्रमादचर्यान् , दर्शनशुद्धान् गणस्य संतुष्टिकरान् // 3 // मोहछिदुग्रतपसः प्रशस्तपरिशुद्धहृदयसुव्यवहारान् / प्रासुक्यनिलयाननघानाशाविध्वंसिचेतसो हतकुपथान् // 4 // 10 अनुवाद जे आचार्यो सिद्धोना क्षायिक सम्यक्त्व आदि गुणोनी स्तुति करवामा सदा लीन रहे छे। क्रोध, मान, माया, लोभरूपी अग्निना समूहना जे अनन्तानुबंधि वगेरे अनेक मेदो छ अर्थात कषायोना मेदो के ते बधा जेओए नष्ट करी नाख्या छे, जे मनोगुप्ति, वचनगुप्ति अने कायगुप्तिनुं पालन करे छे, अने जेओ. निस्पृहता (युक्ति) थी युक्त एवा सत्य वचनवडे जगतना पदार्थोने ओळखावे छे, एवा आचार्योने हुँ 15 नमस्कार* करुं छं॥१॥ .. . . " मुनिओमां जेमनु माहात्म्य विशेष छे, जेमनी मूर्ति जिनशासनने प्रकाशित करवा माटे दीपक समान देदीप्यमान छे, जेमना मनमा सिद्धिपद प्राप्त करवानी इच्छा छे अने जेओ ज्ञानावरणीय आदि कर्मोने बंधाववाना कारणरूप तत्प्रदोष, निह्नव, मात्सर्य आदि कारणोने नाश करवामा अत्यन्त कुशल छे, एवा आचार्योने हुं नमस्कार करुं छु // 2 // 20. जेओनुं शरीर सम्यग्दर्शन वगेरे गुणरूपी मणिओथी सुशोभित छे, जेओ जीवादिक छए द्रव्यना निश्चयने जन्म आपनारा छे अर्थात् जेओ स्वयं षड्द्रव्य विषयक निश्चयवाळा छे अने बीजाओने निश्चय करावनारा छे, जेमनुं चारित्र विकथा आदि प्रमादथी रहित छे, जेमनुं सम्यक्दर्शन शंकादिक दोषोथी रहित छे अने जेओ गच्छनी संतुष्टिने करनारा छे, एवा आचार्योने हुं सदा नमस्कार करुं छं // 3 // जेमनुं उग्र तपश्चरण मोह अने अज्ञाननो नाश करनारुं छे, जेमनुं हृदय प्रशस्त अने परिशुद्ध छे, 25 तथा व्यवहार सुंदर-स्वपरकल्याणकर छे, जेमर्नु रहेवानुं स्थान समूच्छिमादि जीवोथी रहित होय छे, जेओ पाप रहित होय छे, जेमनुं हृदय आशा-स्पृहाथी सर्वथा रहित होय छे अने मिथ्यादर्शनरूपी कुमार्गनो सदा नाश करनारा होय छे, एवा आचार्योने हु सदा नमस्कार करुं छु // 4 // *आ श्लोकमां तथा आगळना श्लोकमां नमस्कारसूचक कोई वाक्य नथी / ते वाक्य दसमा श्लोकमा छ / अने त्यां सुधी बधा श्लोकोनो सम्बन्ध छे। तेथी 'नमस्कार करुं छ'आ वाक्य त्यांथी लेवामा आव्यु छे। भागळ पण 30 एम ज समझएँ / .
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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