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________________ विभाग] सिद्धभक्त्यादिसंग्रहः नार्थः क्षुतृविनाशाद् विविधरसयुतैरनपानैरशुच्याः, न स्पृष्टेर्गन्धमाल्यैर्नहि मृदुशयनैलानिनिद्राधभावात् / आतंकार्तेरभावे तदुपशमनसद्भेषजानर्थतावद्, दीपानर्थक्यवद्वा व्यपगततिमिरे दृश्यमाने समस्ते // 8 // . ताइक्सम्पत्समेता विविधनयतपःसंयमज्ञानदृष्टिचाः सिद्धाः समन्तात्प्रविततयशसो विश्वदेवाधिदेवाः / भूता भव्या भवन्तः सकलजगति ये स्तूयमाना विशिष्टैः, तान् सर्वान् नौम्यनन्तान् निजिगमिपुरहं तत्स्वरूपं त्रिसन्ध्यम् // 9 // सिद्धोनुं सुख हमेशा सुखरूप ज होय छे / संसारिक सुख वेदनीय कर्मना उदयथी थाय छ / तथा पुष्पमाला, चन्दन, भोजन वगेरे बाह्य सामग्रीनी अपेक्षावालु छ। परन्तु सिद्धोनुं सुख बीजा कोई द्रव्यनी अपेक्षा विनानुं 10 होय छे / ते सिद्धोनुं सुख उपमा रहित छे, अपरिमित छे, शाश्वत छे अने सर्व समय रहेनाएं छे। ते सुखनुं सामर्थ्य परमोत्कृष्ट छे अने अनन्त छ। ते सुख परमसुख कहेवाय छ। आबु सुख सिद्धोने होय छे // 7 // जेम कोई जीवने प्राणांत व्याधिनी कोई पीडा अथवा दुःख न होय तो तेने माटे पीडाने शान्त करवा माटे कोई औषधिनी जरूर नथी, अथवा जे वखते अंधकारनो सर्वथा अभाव होय अने बधी वस्तुओ स्पष्ट देखाती होय तो ते वखते दीपकनी कोई जरूर नथी, तेज प्रमाणे ते सिद्ध भगवंतोनी 15 भूख अने तरस चाली गई छे तेथी तेमने अनेक प्रकारना रसोथी परिपूर्ण एवा अन्नजलनुं कोई प्रयोजन नथी। तथा सिद्धोने कोई पण जातनी अपवित्रतानो स्पर्श नथी होतो तेथी तेमने केसर, चन्दन अथवा पुष्पमाला वगेरेनुं पण प्रयोजन नथी। तेवी ज रीते ते सिद्ध भगवंतोने ग्लानि, निद्रा, वगेरेनो सर्वथा अभाव होय छे, तेथी तेमने कोमल शय्यानुं पण कोई प्रयोजन नथी॥८॥ - ते सिद्ध भगवंतो अनन्तज्ञान वगेरे अनेक उत्तम संपत्तिओथी सहित छे अने सर्व नयोनी 20 दृष्टिए विशुद्ध एवा तप, संयम, ज्ञान, दर्शन अने चारित्रथी युक्त छे। तेमनो यश चारे तरफ फेलायेलो छ। तेओ विश्वना देवाधिदेव छ। त्रणे लोकना समस्त भव्य जनो तेओनी सदा स्तुति करे छ / ते भूतकालमां ययेला, भविष्यत् कालमा थनारा अने वर्तमान कालमा थता समस्त अनन्त सिद्धोने हुं सिद्ध स्वरूपने बहु जल्दी ज प्राप्त करवानी इच्छाथी त्रिसन्ध्य नमस्कार करुं छु // 9 // VAD UNDS .
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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