________________ विभाग] सिद्धभक्त्यादिसंग्रहः धारितविलसन्मुण्डान् , वर्जितबहुदण्डपिण्डमण्डलनिकरान् / सकलपरिषहजयिनः क्रियाभिरनिशं प्रमादतः परिरहितान् // 5 // अचलान् व्यपेतनिद्रान, स्थानयुतान्कष्टदुष्टलेश्याहीनान् / विधिनानाश्रितवासानलिप्तदेहान् विनिर्जितेन्द्रियकरिणः // 6 // अतुलानुत्कुटिकासान् , विविक्तचित्तानखण्डितखाध्यायान् / दक्षिणभावसमग्रान् व्यपगतमदरागलोभशठमात्सर्यान् // 7 // भिन्नार्तरौद्रपक्षान् संभावितधर्मसुनिर्मलहृदयान् / 'नित्यं पिनद्धगतीन् पुण्यान् गण्योदयान् विलीनगारखचर्यान् // 8 // जेमनी मन, वचन अने काया, पांचे इन्द्रियो, अने हाथ-पग वगेरेनो ब्यापार बधा पापोथी रहित होय छे अने तेथी जेओ अत्यन्त शोभे छ। जे मुनिओनो समुदाय अधिक दंडनो भागीदार बहुदोषवाळो 10 भाहार ग्रहण करे छे एवा मुनि-समुदायथी जेओ सर्वथा अलग रहे छे (!) / जे तपश्चर्यादि विशेषअनुष्ठानोथी अनेक प्रकारना परीषहोने सदा जीतता रहे छे अने जेओ प्रमादयी सर्वथा रहित होय छे; एवा. आचार्योने हुं सदा नमस्कार करुं छु // 5 // - जेओ अनेक परीषहो आववा छतां पोतानां अनुष्ठानो अने व्रतोथी क्यारेय चलायमान थता नथी, जेओ विशेषे करीने निद्राथी रहित होय छे, जेओ प्रायः कायोत्सर्गमा रहे छे, जेओ अनेक प्रकारना दुःख 15 अने दुर्गतिने आपनारी दुष्ट लेश्याओथी सदा रहित होय छे, जेओए विधिपूर्वक घरनो त्याग कर्यो छे, अथवा जेओना आगमानुसार कंदरा, वसतिका वगेरे अनेक प्रकारनां रहेवानां स्थान छे, जेओ तेल वगेरेपी मालीश करावता नथी अने जेओ इन्द्रियरूपी हाथीओने हमेशा पोताना वशमा राखे छे, एवा आचार्योने ई सदा नमस्कार करुं छं॥६॥ संसारमा जेमनी कोई उपमा नथी, जेओ उत्कटिकासन वगेरे कठण आसनोथी तपश्चरण 20 करे छे, जेमनुं हृदय हमेशा परभावोथी रहित छे, जेमनो स्वाध्याय सदा अखंडित रहे छे, जेमनुं दाक्षिण्य परिपूर्ण छे अने जेमना मद, राग, लोभ, अज्ञान अने मत्सरता चाल्या गया छे, एवा आचार्योने हुं सदा नमस्कार करूं छु // 7 // ___ जेओए आर्तध्यान अने रौदध्यान रूपी पक्षोनो सर्वथा नाश को छे, धर्मध्याननी शुभ भावनाथी जेमनुं हृदय निर्मल बन्युं छे, जेओए नरकादिक दुर्गतिओने सदाने माटे रोकी छे, जेओ अत्यन्त 25 पवित्र छे, जेमनी ऋद्धिओ अने तपश्चरणर्नु माहात्म्य अत्यन्त प्रशंसनीय छे अने जेओ गारव युक्त प्रातिओयी सर्वथा रहित होय छे, एवा आचार्योने हुं सदा नमस्कार कर छु // 8 //