________________ 296 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय एतद्दोषविमुक्तं, शान्तोदात्तादिभावसंयुक्तम् / सततं परार्थनियतं, संक्लेशविवर्जितं चैव // 14-12 // सुस्वमदर्शनपरं, समुल्लसद्गुणगणौधमत्यन्तम् / कल्पतरुवीजकल्पं, शुभोदयं योगिनां चित्तम् // 14-13 // शुद्धे विविक्ते देशे, सम्यक्-संयमितकाययोगस्य / कायोत्सर्गेण दृढं, यद्वा पर्यवन्धेन // 14-15 // साध्यागमानुसाराचेतो विन्यस्य भगवति विशुद्धम् / स्पर्शावधात्तत्सिद्धयोगिसंस्मरणयोगेन // 14-16 // सर्वजगद्धितमनुपममतिशयसन्दोहमृद्धिसंयुक्तम् / / ध्येयं जिनेन्द्ररूपं, सदसि गदत्तत्परं चैव // 15-1 // सिंहासनोपविष्टं, छत्रत्रयकल्पपादपस्याधः / सत्वार्थसंप्रवृत्तं, देशनया कान्तमत्यन्तम् // 15-2 // 15 योगीओनुं चित्त खेदादि आठ दोषोथी रहित, शान्त, उदात्त (उदार, गमीर, धीर) वगेरे भाववाळू, सतत परोपकारमां निरत, संक्लेशथी रहित, श्वेत तथा सुगन्धि पुष्प, वस्त्र, छत्र, चामर वगेरेना शुभ स्वप्न जेने आवे छे एवं, प्रवर्धमान अनेक गुणोवाळु, कल्पवृक्षना बीज सदृश अने शुभ उदयवाळु होय छे // 14-12/13 // 20 पवित्र एकान्त प्रदेशमा प्रथम कायानी चेष्टाओने सारी रीते नियन्त्रित करवी। पछी कायोत्सर्गमुद्रा अथवा पर्यङ्कासनमा स्थिर थर्बु / पछी तत्त्वज्ञानना संस्कार वडे जेओए ध्यानमा रहीने आत्मस्वरूपने प्राप्त कयु छे, एवा सिद्धयोगी पुरुषोनु स्मरण करवू / पछी आगमोक्त रीते सम्यक् प्रकारे परमात्मामां विशुद्ध चित्तने स्थापq / पछी श्रीजिनरूपनुं ध्यान करवू / ए रीते ध्यान शीघ्रतः सिद्ध थाय छे॥१४-१५/१६॥ xxxx ते सालंबन ध्यान आ रीते करवु : सर्व प्राणीओने हितकर, जेना शरीरादिना सौन्दर्यने कोई उपमा नथी एवा अनुपम, अनेक अतिशयोथी सम्पन्न, आमाँषधि वगेरे नाना प्रकारनी लब्धिओथी सहित, समवसरणमां सातिशय वाणीवडे देशना आपता, देवनिर्मित सिंहासन पर विराजमान, छत्रत्रय अने कल्पवृक्ष नीचे रहेला, 30 देशना द्वारा सर्व सत्त्वोना परम अर्थ-मोक्ष माठे प्रवृत्त, अत्यन्त मनोहर, शारीरिक अने मानसिक 25