________________ विभाग] षोडशकप्रकरणसंदर्भ भावरसेन्द्रात्तु ततो, महोदयाजीवतास्व(प्र)रूपस्य / कालेन भवति परमाऽप्रतिबद्धा सिद्धकाञ्चनता॥८॥८॥ स्नानविलेपनसुगन्धिपुष्पधूपादिभिः शुभैः कान्तम् / विभवानुसारतो यत् , काले नियतं विधानेन // 9 // 1 // अनुपकृतपरहितरतः, शिवदस्त्रिदशेशपूजितो भगवान् / पूज्यो हितकामानामिति भक्त्या पूजनं पूजा // 9 // 2 // इति जिनपूजां धन्यः, शृण्वन् कुर्वस्तदोचितां नियमात् / भवविरहकारणं खलु, सदनुष्ठानं द्रुतं लभते // 9 // 16 // सालम्बनो निरालम्बनश्च, योगः परो द्विधा ज्ञेयः / जिनरूपध्यानं खल्वाधस्तत्तत्चगस्त्वपरः // 14 // 1 // अष्टपृथग्जनचित्तत्यागाद्योगिकुलचित्तयोगेन। जिनरूपं ध्यातव्यं, योगविधावन्यथा दोषः // 14-2 // xxx x आवो भाव ('सर्वै र्गुणैः स एवाहम्' वगेरे भाव) ते परम रसेन्द्र (पारो-पारसमणि) छे / एना वडे अनुक्रमे जीवरूप ताम्र श्रेष्ठ एवी सिद्धरूपी कांचनताने पामे छे. // 8-8 // . . . मुमुक्षुओए, स्नात्र, विलेपन, सुगन्धिपुष्प, धूप वगेरे वडे करीने पोताना वैभव, नियतकाळे, आगमोक्तरीते, भक्तिभावपूर्वक-निष्कारण वत्सल, मोक्षने आपनार कल्याणना अभिलाषीओने पूज्य अने 20 देवेन्द्रोथी पूजाएला श्रीतीर्थंकर परमात्माना बिंबनी पूजा करवी जोईए. // 9-1/2 // .. / अहीं कहेली जिनपूजाने सांभळीने जे धन्य पुरुष शास्त्रोक्त रीते सर्व औचित्य सहित श्रीजिनेश्वर भगवंतनी पूजा करे छे ते संसारना उच्छेदक एवा सदनुष्ठानने शीघ्रतः नियमा पामे छे // 9-16 // योग सालम्बन अने निरालम्बन एम बे प्रकारनो छे / समवसरणमा विराजमान एवा श्रीजिनश्वर 25 परमात्मानुं ध्यान ते सालंबन योग छे, मुक्तिगत परमात्माना स्वरूपनुं ध्यान ते निरालंबन योग छ / आ मुक्तिगत रूप से सिद्धात्माना जीवप्रदेशोना संघातरूप छे अने केवलज्ञान वगेरे तेनो स्वभाव छे // 14-1 // . सामान्य माणसोनुं चित्त खेदादि* आठ दोषोथी सहित होय छे / एवा चित्तनो त्याग करीने योगी सदृश निर्मल चित्तवडे योग क्रिया समये श्रीजिनरूपनुं ध्यान कर। एथी बीजी रीते (चित्तना दोषो सहित) करातुं ध्यान ते दोषरूप छे // 14-2 // .. .. . 30 . ..विशेष वर्णन माटे जुओ-बोडशक 14, गा, 1/11. ........ ... .. .