________________ 294 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय मुक्त्यादौ तत्त्वेन, प्रतिष्ठिताया न देवतायास्तु / स्थाप्ये न च मुख्येयं, तदधिष्ठानाद्यभावेन // 8 // 6 // भवति च खलु प्रतिष्ठा, निजभावस्यैव देवतोद्देशात् / / स्वात्मन्येव परं यत् , स्थापनमिह वचननीत्योच्चैः // 8 // 4 // न्याससमये तु सम्यक्, सिद्धानुस्मरणपूर्वकमसंगम् / सिद्धौ तत् स्थापनमिव, कर्तव्यं स्थापनं मनसा // 8 // 12 // .. बीजमिदं परमं यत्, परमाया एव समरसापत्तेः।। स्थाप्येन तदपि मुख्या, हन्तैषैवेति विज्ञेया // 8 // 5 // मुक्तिमा रहेला एवा श्रीऋषभादि परमात्मानी मुख्य प्रतिष्ठा जिनबिंबमा थवी शक्य नथी, 10 कारण के ते बहु दूर छे अने मंत्रादि संस्कारोथी तेमनुं मूर्तिमा अधिष्ठान के संनिधान संभवित नथी / एवी ज रीते सांसारिक इन्द्रादि देवताओनी पण प्रतिष्ठा मुख्य नथी कारण के मंत्रादिवडे ते देवता मूर्तिमां आवे ज एवो नियम नथी (आवे अथवा न पण आवे) // 8-6 // तेथी अहीं ते प्रतिष्ठा मुख्य देवताने उद्दशीने करेला प्रतिष्ठा करावनारना पोताना भावनी ज समजवी / अहीं (प्रतिष्ठाना विषयमां) 'मुक्तिमा रहेला श्रीऋषभादि परमात्मा ते ज हुं छु,' एवो भाव आत्मामां 15 उत्पन्न थवो जोईए। आ तात्त्विक प्रतिष्ठा थई। पछी ए भावनो (बाह्य) जिनबिंबादिमां उपचार करवामां आवे छे / आ बाह्य प्रतिष्ठा थई / अहीं बाह्य प्रतिष्ठा वखते 'ते (परमात्म विषयक भाव) ज आ (बिंब) छे,' एवो *भावोपचार होय छे // 8-4 // बिंबमां 'ॐ नमः ऋषभाय' वगेरे मंत्रोनो न्यास करवानो होय छे / ते पूर्व परमपदे रहेला एवा श्रीसिद्ध परमात्मानुं सारी रीते स्मरण कर जोईए / ए वखते शारीरिक अने मानसिक संगनो त्याग 20 करीने केवलज्ञानादि गुणो वडे सहित श्रीसिद्ध परमात्मा सिद्धशिला पर जेवी रीते रहेला छे, तेवी ज रीते पोताना मनमा लावीने मनना शुभव्यापार वडे भावरूपे बिंबमां स्थापवा जोईए। ए रीते श्रीसिद्धस्मरणरूप जे पोतानो भाव तेनी ज अहीं प्रतिष्ठा छ / तात्पर्य के बिंबमां पोताना भाव द्वारा श्रीसिद्धपरमात्माना गुणोनो आरोप करवामां आवे छे, तेथी ते बिंबने जोतां ज जोनारने 'आ मूर्ति प्रतिष्ठित छे' एवो ख्याल आवतां सर्व गुणो वडे 'ते (सिद्ध ज) हुं छु'ए प्रकारे पोताना आत्मामां परमात्मानुं स्थापन थाय छे // 8-12 // 25 आवी जे निजभावनी प्रतिष्ठा ते स्थाप्य-श्री सर्वज्ञ परमात्मा साथेनी परम समरसापत्तिनुं बीज छ। एज प्रधान प्रतिष्ठा छे // 8-5 // * सूक्ष्म दृष्टिए विचारतां एवं लागे छे के-आ भावोपचारना प्रभावथी ज दर्शन करवा आवनार बुद्धिमान पुरुषना भावनो प्रतिष्ठापकना ए भावनी साथे अभेद उत्पन्न थाय छे, तेथी तेना (दर्शन करनारना) हृदयमां पण बिंबने जोतां "ते (परमात्मा)ज आ (बिंब) छे"एवो भाव जागे छे अने अंते ए भावना प्रभावे "ते (परमात्मा) 30 ज हुं छु" एवो भाव तेना आत्मामां उत्पन्न थाय छे। ए रीते ते पण परमात्मानी साथे समरसापत्ति अनुभवे छे भने भचिंत्य लाभ ते मेळवे छ। प्रतिष्ठापकने प्रथम बाबालंबन विना सिद्धभावने भात्मामा स्थापवो पडे छे; करनारने प्रतिष्ठित जिनबिंबना आलंबनयी ए भाव उत्पन याय छे, ए भही विशेष समजवो। ज्यारे दर्शन