________________ विभाग 287 जिनसहस्रनामस्तवनम् स्यावादी दिव्यगीर्दिव्यध्वनिरव्याहतार्थवाक् / पुण्यवागर्थ्यवागर्धमागधीयोक्तिरिद्धवाक् // 50 // अनेकान्तदिगेकान्तध्वान्तभिद् दुर्णयान्तकृत् / सार्थवागप्रयत्नोक्तिः प्रतितीर्थमदनवाक् // 51 // स्यात्कारध्वजवागीहापेतवागचलौष्ठवाक् / अपौरुषेयवाक्छास्ता, रुद्धवाक् सप्तभङ्गिवाक् // 52 // अवर्णगीः सर्वभाषामयगीय॑क्तवर्णगीः / अमोघवागक्रमवागवाच्यानन्तवागवाक् // 53 // अद्वैतगीः सूनृतगीः, सत्यानुभयगीः सुगीः। योजनव्यापिगीः क्षीरगौरगीस्तीर्थकृत्त्वगीः॥५४॥ भव्यैकश्रव्यगुः सद्गुश्चित्रगुः परमार्थगुः। प्रशान्तगुः प्राश्निकगुः, सुगुर्नियतकालगुः॥५५॥ सुश्रुतिः सुश्रुतो याज्यश्रुतिः सुश्रुन्महाश्रुतिः। धर्मश्रुतिः श्रुतिपतिः, श्रुत्युद्धर्ता ध्रुवश्रुतिः // 56 // निर्वाणमार्गदिग्मार्गदेशकः सर्वमार्गदिक् / सारस्वतपथस्तीर्थपरमोत्तमतीर्थकृत् // 57 // देष्टा वाग्मीश्वरो धर्मशासको धर्मदेशकः। वागीश्वरस्त्रयीनाथस्त्रिभङ्गीशो गिरांपतिः॥ 58 // सिद्धाशः सिद्धवागाशासिद्धः सिद्धैकशासनः। जगत्प्रसिद्धसिद्धान्तः, सिद्धमन्त्रः सुसिद्धवाक् // 59 // शुचिश्रवा निरुक्तोक्तिस्तन्त्रकृन्न्यायशास्त्रकृत् / महिष्ठवाग्महानादः, कवीन्द्रो दुन्दुभिस्वनः॥६०॥ 5 अथ नाथशतकम् नाथः पतिः परिवृढः, स्वामी भर्ता विभुः प्रभुः। ईश्वरोऽधीश्वरोऽधीशोऽधीशानोऽधीशितेशिता / / 61 // ईशोऽधिपतिरीशान इन इन्द्रोऽधिपोऽधिभूः। महेश्वरो महेशानो महेशः परमेशिता / / 62 // अधिदेवो महादेवो, देवत्रिभुवनेश्वरः। विश्वेशो विश्वभूतेशो विश्वेड् विश्वेश्वरोऽधिराट् // 63 // लोकेश्वरो लोकपतिर्लोकनाथो जगत्पतिः। त्रैलोक्यनाथो लोकेशो जगन्नाथो जगत्प्रभुः // 64 // पिताः परः परतरो, जेता जिष्णुरनीश्वरः। कर्ता प्रभूष्णु जिष्णुः, प्रभविष्णुः स्वयंप्रभः॥६५॥ लोकजिद्विश्वजिद्विश्वविजेता विश्वजित्वरः। जगज्जेता जगज्जैत्रो, जगज्जिष्णुर्जगज्जयी॥६६॥ अग्रणीमिणीर्नेता, भूर्भुवःस्वरधीश्वरः / धर्मनायक ऋद्धीशो, भूतनाथश्च भूतभृत् // 17 //