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________________ 271 विभाग] जिनसहस्रनामस्तोत्रम् नमस्ते क्रमोद्यद्गुणस्थानकाय, नमस्ते परिक्षीणनिद्राभयाय / नमस्तेऽजुगुप्साय वेदोज्झिताय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 77 / / नमो विप्रमुक्ताय हास्येन रत्या, नमो विप्रमुक्ताय शोकारतिभ्याम् / नमस्ते क्षरनोकषायाय मूलात्, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 78 // नमश्छिन्दते क्रोधमानौ दुरन्तौ, नमो निनते दम्भलोभौ समूलम् / नमस्ते यथाख्यातचारित्रराज्ञे, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 79 // नमः क्षीणमोहाय सुनातकाय, नमो घातिकर्मद्विषद्घातकाय / नमो जातकर्मत्रिषष्टिक्षयाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 80 // नमः प्रज्वलद्ध्यानदावानलाय नमोदग्धनिश्शेषकर्मोपलाय (कर्मेन्धनाय)। नमस्ते चतुःकमशेषोदयाय, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 81 // नमस्तेज कर्मद्वयोदीरकाय, नमस्सत्तयाऽशीतियुपञ्चकाय / नमो बनते त्रिक्षणस्थायिसातं, नमस्ते नमस्ते नमस्ते नमस्ते // 82 // -- क्रमथी गुणठाणे चडता एवा आपने नमस्कार थाओ। त्रण निद्रा, भय, जुगुप्सा, अने त्रण वेदनो क्षय करनारा आपने नमस्कार थाओ // 77 // . . हास्य ने रति थी रहित एवा आपने नमस्कार थाओ। शोक ने अरतिथी विमुक्त एवा आपने 15 नमस्कार थाओ। नवे नोकषायनो मूळयी क्षय करनारा आपने नमस्कार थाओ // 78 // - दुरंत एवा क्रोध अने माननो छेद करनारा आपने नमस्कार थाओ। दंभ (माया) तथा लोभनो समूळ नाश करनारा आपने नमस्कार थाओ। यथाख्यात चारित्रना राजा (स्वामी) एवा आपने नमस्कार थाओ / / 79 // ____ क्षीणमोह गुणठाणे पहोंचेला ने सुस्नातक (वीतराग) एवा आपने नमस्कार थाओ। चार 20 घातीकर्मरूपी शत्रुनो घात करनारा आपने नमस्कार थाओ। जेमनी त्रेसठ कर्मप्रकृतिओनो क्षय थयो छे एवा आपने नमस्कार थाओ (आठ कर्मनी 148 प्रकृतिनी गणनाए 63 प्रकृति जता 85 प्रकृति रहे छ। तेनो क्षय चौदमे गुणठाणे ज थाय छे / ) // 80 // जेमनो ध्यानरूपी दावानल प्रज्वलित छे एवा आपने नमस्कार थाओ। सकल घातिकर्मरूप इन्धनने भस्मसात करनार आपने नमस्कार थाओ। जेमने शेष चार अघातिकर्मो उदयमा छे एवा आपने 25 नमस्कार थाओ // 81 // नाम अने गोत्र कर्मनी उदीरणा करनार आपने नमस्कार थाओ। जेमने सत्तामा 85 प्रकृतिओ रहेली छे एवा आपने नमस्कार थाओ / त्रिक्षणनी स्थितिवाळा सातावेदनीयने बांधनारा आपने नमस्कार थाओ / (पहेले समये बंधाय, बीजे समये वेदाय ने बीजे समये क्षय थाय / / 82 //
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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