________________ 242 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय (शार्दूलविक्रीडित-वृत्तम्) विश्वस्मिन्नपि विष्टपे दिनकरीभूतं महातेजसा, यैरर्हद्भिरितेषु तेषु नियतं मोहान्धकारं महत्। जातं तत्र च दीपतामविकलां प्रापुः प्रकाशोद्गमा- .. दाचार्याः प्रथयन्तु ते तनुभृतामात्म-प्रबोधोदयम् // 4 // (उपजाति-वृत्तम्) पाषाण-तुल्योऽपि नरो यदीयप्रसाद-लेशाल्लभते सपर्याम् / जगद्धितः पाठक-संचयः स कल्याणमालां वितनोत्वभीक्ष्णाम् // 5 // (वसन्ततिलका-वृत्तम्) संसारनीरधिमवेत्य दुरन्तमेव, __यैः संयमाख्य-वहनं प्रतिपत्रमाशु / ते साधकाः शिवपदस्य जिनाभिषेके (1),. साधुव्रता विरचयन्तु महाप्रबोधम् // 6 // 10 समप्र विश्वमा महान् तेजवडे सूर्यरूपे थईने रहेला एवा तीर्थंकरोना निर्वाण पछी महान् 15 मोहान्धकार फेलाई गयो, ते वखते जेओ प्रकाशना उद्गमथी अखंड दीपकपणाने पाम्या, ते आचार्यो . प्राणीओना आत्मज्ञानना विकासनो विस्तार करो // 4 // ___ जेमनी कृपाना लेशथी पत्थर समान पुरुष पण पूजाने प्राप्त करे छे, ते जगतनुं हित करनार . उपाध्याय-वर्ग निरंतर कल्याणनी परंपरानो विस्तार करो // 5 // 'संसार समुद्र दुःखे करीने पार पामी शकाय एवो छे', एम जाणीने जेमणे चारित्ररूपी वहाणने 20 शीघ्र अंगीकार कर्यु, ते शिवपदना साधक मुनिवरो (!) महाप्रबोधनी रचना करो॥ 6 // परिचय आचार्य श्री वर्धमानसूरिविरचित 'आचार-दिनकर' (प्रका० : खरतरगच्छ प्रन्थमाला पुष्प 2, पांजरापोळ, लालबाग, मुंबई-४; मुद्रक : निर्णयसागर प्रेस, मुंबई-२) नामक ग्रंथना द्वितीय विभागना पृष्ठ 159 परथी आ श्लोको तारववामां आव्या छ।