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________________ 240 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय लोकद्विष्टप्रियावश्यघातकादेः स्मृतोऽपि यः। मोहनोच्चाटनाकृष्टिकार्मणस्तम्भनादिकृत् / / 78 // दूरयत्यापदः सर्वाः, पूरयत्यत्र कामनाः। राज्य-स्वर्गापवर्गास्तु, ध्यातो योऽमुत्र यच्छति // 79 // श्रीपार्श्वप्रतिमापूजाधपोत्क्षेपादिपूर्वकम् / तमेकाग्रमनाः पूतवपुर्वस्त्रोऽनिशं जपेत् / / 80 // 9 // . . ते (पंच-नमस्कार-मंत्र) स्मरणमात्रथी पण लोक, द्वेषी, प्रिया (स्त्री), वशमां करवा योग्य अने घातक मारनार वगेरेविशे अनुक्रमे मोहन (मोह पमाडवू), उच्चाटन (उखेडी नाखवू), आकर्षण (खेंचवू), कामण (वश करवं), अने स्तंभन (थंभावी देवू) वगेरे करनार थाय छे / 78 // . 10 (सारी रीते) ध्यान करायेलो (पंच-नमस्कार मंत्र) आ लोकमां सर्व आपदाओने दूर करे छे तथा सर्व कामनाओने पूर्ण करे छे, तथा जे परलोकमां राज्य, स्वर्ग अने मोक्ष आपे छे // 79 // ते मंत्रनो श्री पार्श्वनाथ भगवाननी प्रतिमानी पूजा तथा धूपोत्क्षेपादिपूर्वक, पवित्र शरीर अने वस्त्र वडे तथा मननी एकाग्रता वडे तुं निरंतर जाप कर // 80 // परिचय 15 आ संदर्भ 'सुकृत-सागर' अपर नाम 'पेथडचरित्र'ना पश्चम तरङ्ग पृष्ठ 31 परथी लेवामां आव्यो छे / आ प्रन्थ श्री आत्मानंद जैन सभा, भावनगरथी वि. सं. 1971 मा प्रकाशित थयो छ / तेना प्रन्थना कर्ता श्रीसोमसुन्दरसूरिना शिष्य श्रीरत्नमण्डनगणि छ / तेओ विक्रमनी पंदरमी शताब्दिमा थयेल छ / 'जल्प-कल्पलता' नामनो तेमनो कवित्वपूर्ण प्रन्थ सुप्रसिद्ध छे / आ संदर्भमां नवकारनो महिमा वर्णव्यो छे अने विविध प्रकारना उपद्रवो आ नवकारना स्मरणथी शमी जाय छे तेम जणाव्युं छे /
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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