________________ विभाग] 239 अभयकुमारचरितसंदर्भः अत एव महामन्त्र, एषः स्मर्येत कोविदः। जागरे शयने स्थाने, गमने स्खलने क्षुते // 50 // इह लोकेऽर्थ-कामाद्या, नमस्कारप्रभावतः। परत्र सत्कुलोत्पत्तिः, स्वर्गः सिद्धिश्च जायते // 51 // एथी ज पंडित पुरुषो जागृत स्थितिमां अने शयनकाले, स्थिरतामां अने गमनमां, स्खलनमां 5 अने छींक पछी आ महामंत्रनुं स्मरण करे छे // 50 // नमस्कारना प्रभावथी आ लोकमां अर्थ, काम वगेरेनी प्राप्ति अने परलोकमां उच्चकुलमा जन्म वगेरे तथा स्वर्ग अथवा मोक्षनी प्राप्ति थाय छे // 51 // परिचय श्रीचन्द्रतिलक उपाध्याये रचेला 'श्रीअभयकुमारचरित' ना सर्ग 11, पृ० 644-646 10 मांथी पंचपरमेष्ठी संबंधी आ संदर्भ तारवीने तेने अनुवाद साथे अहीं प्रगट कर्यो छे। श्रीचन्द्रतिलक उपा० श्रीजिनेश्वरसूरिना शिष्य हता, तेमणे 9036 श्लोक प्रमाणनो 'श्री अभयकुमारचरित' ग्रंथ वि सं० 1312 मां रच्यो हतो। * आ संदर्भमां पांच परमेष्ठीओनो महिमा अने तेमनी आराधमानुं फल दर्शाव्यु छ / 15 श्रीरत्नमण्डनगणिविरचितः सुकृतसागरसंदर्भः मन्त्रः पञ्चनमस्कारः, कल्पकारस्कराधिकः / अस्ति प्रत्यक्षराष्ट्राग्रोत्कृष्टविद्यासहस्रकः // 76 // चौरो मित्रमहिर्माला, वहिर्वारि जलं स्थलम् / कान्तारं नगरं सिंहः, शृगालो यत्प्रभावतः॥७७॥ अनुवाद पंचनमस्कार-मंत्र कल्पवृक्षथी अधिक (प्रभाववाळो) छे। तेना प्रत्येक अक्षर उपर एक हजार ने आठ महा-विद्याओ रहेली छे, तेना प्रभावथी चोर मित्र बने छे, सर्प माला बने छे, अग्नि जल बने छे, जल स्थल बने छे, अटवी नगर बने छे अने सिंह शियाळ बने छ / 76-77 // . 25