________________ 234 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत भुजवक्त्रनेत्रसंख्या, भावः क्रूरस्तथेतरः। वर्णः स्पर्शः स्वरोऽवस्था, वस्त्रं भूषणमायुधम् // 215 // एवमादि यदन्यञ्च, शान्तक्रूराय कर्मणे / मन्त्रवादादिषु प्रोक्तं, तद्धथानस्य परिच्छदः / / 216 // यदात्रिकं फलं किञ्चित्, फलमामुत्रिकं च यत् / एतस्य द्वितयस्यापि, ध्यानमेवाग्रकारणम् // 217 // ध्यानस्य च पुनर्मुख्यो, हेतुरेतचतुष्टयम् / गुरूपदेशः श्रद्धानं, सदाम्यासः स्थिरं मनः // 218 // रत्नत्रयमुपादाय, त्यक्त्वा बन्धनिबन्धनम् / ध्यानमभ्यस्यतां नित्यं, यदि योगिन् मुमुक्षसे / / 223 // ध्यानाम्यासप्रकर्षेण, त्रुटथन्मोहस्य योगिनः / चरमाङ्गस्य मुक्तिः स्यात्, तदाऽन्यस्य च क्रमात् // 224 // भुजा-मुख-नेत्रोनी संख्या, क्रूर तथा शांतभाव, वर्ण, स्पर्श, स्वर, अवस्था, वस्त्र, आभूषण, आयुध 15 वगैरे अने बी जे कांई मंत्रशास्त्रादिमां शांत तथा क्रूर कर्ममाटे कयुं छे ते बधुं ध्यान- साधन समजबुं // 213-216 // जे कई इहलौकिक फळ छे अने जे कई पारलौकिक फळ छे, ते बंनेनुं मुख्य कारण ध्यान ज छे // 217 // ध्यानना मुख्य चार हेतुओ20 ध्यानना आ चार मुख्य हेतुओ छे-गुरूनो उपदेश, श्रद्धा, सदा अभ्यास अने स्थिर मन // 218 // ध्यानाभ्यास माटे प्रेरणा __ हे योगिन् ! जो तने मुक्त थवानी इच्छा होय तो कर्मबंधना (परिग्रहादि) कारणोनो त्याग करीने 25 अने रत्नत्रयनो अंगीकार करीने तुं सदा ध्याननो अभ्यास कर // 223 // ध्यानमां फळो ध्यानाभ्यासनी उत्तरोत्तर वृद्धि थवाथी नाश पामी रह्यो छे मोह जेनो एवो योगी जो ते चरमशरीरी होय तो ते ज भवमां तेनो मोक्ष थाय छे, बीजानी क्रमशः (थोडाक भवोमां) मुक्ति थाय छे // 224 // --