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________________ विभाग 233 तत्त्वानुशासन स्वयं सुधामयो भूत्वा, वर्षन्नमृतमातुरे / अथैनमात्मसात्कृत्य, दाहज्वरमपास्यति // 207 // . क्षीरोदधिमयो भूत्वा, प्लावयन्नखिलं जगत् / शान्तिकं पौष्टिकं योगी विदधाति शरीरिणाम् // 208 // किमत्र बहुनोक्तेन, यद्यत्कर्म चिकीर्षति / तद्देवतामयो भूत्वा, तत्तनिवर्तयत्ययम् // 209 // शान्ते कर्मणि शान्तात्मा, क्रूरे क्रूरो भवन्नयम् / शान्तक्रूराणि कमोणि, साध्यत्येव साधकः / / 210 // आकर्षणं वशीकारः, स्तम्भनं मोहनं द्रुतिः / निर्विषीकरणं शान्तिर्विद्वेषोच्चाट-निग्रहाः // 211 // एवमादीनि कार्याणि, दृश्यन्ते ध्यानवर्चिनाम् / ततः समरसीभावसफलत्वाम विभ्रमः // 212 // यत्पुनः पूरणं कुम्भो, रेचनं दहनं प्लवः / सकलीकरणं मुद्रामन्त्रमण्डलधारणाः // 213 // कर्माधिष्ठातृदेवानां, संस्थानं लिङ्गमासनम् / प्रमाणं वाहनं वीर्य, जातिर्नाम द्युतिर्दिशा / / 214 // * स्वयं अमृतमय थईने पीडित उपर अमृतने वरसावतो योगी, एने (पीडितने) आत्मसात् (स्वाधीन अथवा अमृतमय) करीने एना दाहज्वरने दूर करे छे // 207 // . स्वयं क्षीरसागरमय थईने सकल जगतने प्लावित (तृप्त) करतो योगी प्राणीओना शांतिकृत्य अने पुष्टिकृत्यने करे छे // 208 // 20 आ विषयमा बहु कहेवाथी शु? योगी जे जे कर्मने करवानी इच्छा करे छे ते ते कर्मना देवतारूपे स्वयं थईने ते ते कर्मनुं संपादन करे छे / 209 // शांत कर्मोमां शांत थईने अने क्रूर कर्मोमां क्रूर थईने आ साधक शांत अने क्रूर कर्मोने साधे छे॥२१०॥ - ध्यान करनाराओमा आकर्षण, वशीकरण, स्तंभन, मोहन, द्रुति, निर्विषीकरण, शांति, विद्वेष, उच्चाटन, निग्रह, वगेरे अनेक कार्यो जोवामां आवे छे, तेथी ए रीते समरसीभाव (ध्याननी एकाग्रता) नी 25 सफळता थती होवाथी ध्यान भ्रान्तिरूप नथी // 211-212 // ध्याननी सामग्री. पूरक, कुंभक, रेचक, दहन, प्लावन, सकलीकरण, मुद्रा, मंत्र, मंडल, धारणा, ते ते कर्मना अधिष्ठायक देवताओनां संस्थान, चिह, आसन, प्रमाण, वाहन, वीर्य, जाति, नाम, कांति, दिशा,
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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