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________________ 212 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय तद्धथानाविष्टमालोक्य, प्रकम्पन्ते महाग्रहाः। नश्यन्ति भूतशाकिन्यः, ऋराः शाम्यन्ति च क्षणात् // 199 // यो यत्कर्मप्रभुर्देवस्तद्धथानाविष्टमात्मनः / ध्याता तदात्मको भूत्वा, साधयत्यात्मवाञ्छितम् / / 200 // पार्श्वनाथो भवन्मन्त्री, संकलीकृतविग्रहः / महामुद्रां महामन्त्र, महामण्डलमाश्रितः // 201 // तैजसीप्रभृतीर्बिभ्रद्धारणाश्च यथोचितम् / / निग्रहादीनुदग्राणां, ग्रहाणां कुरुते द्रुतम् // 202 // स्वयमाखण्डलो भूत्वा, महामण्डलमध्यगः / किरीटकुण्डली वजी, पीतभूषाम्बरादिकः // 203 // कुम्भकी स्तम्भमुद्रायः(१), स्तम्भनं(न)मन्त्रमुच्चरन् / स्तम्भकार्याणि सर्वाणि, करोत्येकाग्रमानसः // 204 // स स्वयं गरूडीभूय, श्वेडं क्षपयति क्षणात् / / कन्दर्पश्च स्वय भूत्वा, जगमयति वश्यताम् // 205 // एवं वैश्वानरो भूत्वा, ज्वलज्ज्वालाशताकुलः / शीतज्वरं हरत्याशु, व्याप्य ज्वालाभिरातुरम् // 206 // अरिहंत अथवा सिद्धना ध्यानमां लयलीन एवा महात्माने जोईने मोटा मोटा प्रहो पण कंपे छे. भूत, प्रेत, शाकिनी, डाकिनी, वगेरे दूरथी भागी जाय छे अने अत्यंत क्रूर एवा जंतुओ पण क्षणवारमा शांत बनी जाय छे // 199 // 20 जे देवता जे (शान्त्यादि) कर्मने साधवामां समर्थ होय तेना ध्यानथी आविष्ट एवो ध्याता तद्रूप (ते देवतारूप) थईने मनोवांछितने साधे छे // 20 // यथोचित रीते सकलीकरण विधानद्वारा शरीरने सुरक्षित करनार, महामुद्रा, महामंत्र अने महामंडलनो आश्रय करनार अने तैजसी वगेरे धारणाओ धारण करतो एवो मांत्रिक (स्वयं) पार्श्वनाथ थईने (श्री पार्श्वनाथन अमेद ध्यान करीने) मोटा मोटा ग्रहोनो पण तरत ज निग्रह करे छे // 201-202 // 25 मुकुट, कुंडल वगेरे पहेरेला, हाथमां वज्र धारण करेला अने पीत वस्त्र तथा अलंकारोथी शोभता एवा इन्द्र जेवो ते बने छे अने महामंडलना मध्यभागमा रहीने तथा कुंभक प्राणायाम, स्तंभनमुद्रा वगेरे करीने स्तंभन-मंत्रने एकाग्र मनथी उच्चरतो ते सर्व स्तंभन कार्यों करे छे / 203-204 // ते स्वयं गरुड थईने क्षणमात्रमा विषने हरे छे, तथा स्वयं कामदेव बनीने जगतने वश करे छे // 205 // एवी ज रीते जेमाथी सेंकडो जाज्वल्यमान ज्वाळाओ नीकळी रही छे एवा अग्निरूप बनीने 30 पोतानी ज्वालाओथी शीतज्वरथी पीडाती व्यक्तिने व्यापी ने शीतज्वरने तरत ज हरे छे // 206 // . . 1 पाठान्तरम्-सफलीकृतविग्रहः।
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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