________________ विभाग] तत्त्वानुशासन 231 अथवा भाविनो भूता; स्वपर्यायास्तदात्मकाः। आसते द्रव्यरूपेण, सर्वद्रव्येषु सर्वदा // 192 // ततोऽयमहत्पर्यायो, भावी द्रव्यात्मना सदा। भव्येष्वास्ते सतश्चास्य, ध्याने को नाम विभ्रमः // 193 // किञ्च भ्रान्तं यदीदं स्यात्, तदा नातः फलोदयः।। न हि मिथ्याजलाजातु, विच्छित्तिर्जायते तृषः // 194 // प्रादुर्भवन्ति चामुष्मात्, फलानि ध्यानवर्तिनाम् / धारणावशतः शान्तक्रूररूपाण्यनेकधा // 195 // गुरूपदेशमासाद्य, ध्यायमानः समाहितैः। अनन्तशक्तिरात्मायं, मुक्तिं भुक्तिं च यच्छति // 196 // ध्यातोऽर्हत्सिद्धरूपेण, चरमाङ्गस्य मुक्तये / तद्धथानोपात्त-पुण्यस्य, स एवान्यस्य भुक्तये // 197 // ज्ञानं श्रीरायुरारोग्यं, तुष्टिः पुष्टिवपुर्धतिः / यत्प्रशस्तमिहान्यच्च, तत्तद्धयातुः प्रजायते // 198 // 15 बीजी रीते समाधान अथवा सर्व द्रव्योमां द्रव्यात्मक एवा भूत अने भविष्यना स्वपर्यायो द्रव्यरूपे सदा रहे छे(अर्थात् प्रत्येक द्रव्यमां तेना भूत-भावि सर्व पर्यायो वर्तमानमा द्रव्यरूपे रहेला छे), तेयी सर्व भव्योमा भविष्यमा थनारा एवा आ 'अर्हत्पर्याय' द्रव्यरूपे सदा रहेला छे। तो पछी विद्यमान एवा ए पर्याय, ध्यान करवामां भ्रांति शी ? // 192-193 // वळी बीजा प्रकारे समाधान 20 जो आ ध्यानने भ्रान्त मानवामां आवे तो, जेम कल्पित जलथी तृषानो नाश कदापि न ज थाय, तेत्री रीते ए ध्यानथी फल प्राप्ति न थवी जोईए। किन्तु एथी ध्यानीओने धारणना बळे शान्त अने क्रूररूप अनेक प्रकारनां फळोनी प्राप्ति थती देखाय छे। एथी आत्मानुं अर्हदूपे ध्यान कर ते भ्रान्ति नथी // 194-195 // ध्यान- फळ 25 - श्री.सद्गुरुना उपदेशने प्राप्त करीने समाहित योगीओ वडे ध्यायमान आ अनंत शक्तिशाली आत्मा मुक्ति अने भुक्तिने आपे छे // 196 // अर्हन्त अथवा सिद्धरूपे जेनुं ध्यान करायुं छे एवो आ आत्मा चरम शरीरीनी मुक्ति माटे थाय छ, अथवा ते ध्यानवडे प्राप्त कर्यु छे पुण्य जेणे एवा अन्य(अचरमशरीरी)नी भुक्ति माटे थाय छे // 197 // (भुक्तिने बतावे छे-) ते ते प्रकारनुं ध्यान करनारने आ लोकमां अने परलोकमा जे जे प्रशंसनीय 30 छे ते बधुं-ज्ञान, लक्ष्मी, दीर्घायु, आरोग्य, तुष्टि, पुष्टि, सुंदर शरीर, धैर्य, वगेरे प्राप्त थाय छे // 198 //