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________________ विभाग] 227 . तत्त्वानुशासन लोकाग्रशिखरारूढमुढसुखसम्पदम् / सिद्धात्मानं निराबाधं, ध्यायेनिधूतकल्मषम् // 122 // तथाधमाप्तमाप्तानां, देवानामधिदैवतम् / प्रक्षीणघातिकर्माणं, प्राप्तानन्तचतुष्टयम् // 123 // दूरमुत्सृज्यभूभागं, नभस्तलमधिष्ठितम् / परमौदारिकस्वाङ्गप्रभाभर्सितभास्करम् // 124 // चतुस्त्रिंशन्महाश्वर्यैः, प्रातिहार्यैश्च भूषितम् / मुनि-तिर्यङ्नर-स्वर्गि-सभाभिः सन्निषेवितम् // 125 / / जन्माभिषेकप्रमुखप्राप्तपूजातिशायिनम् / केवलज्ञाननिर्णीतविश्वतत्वोपदेशिनम् // 126 // प्रभास्वल्लक्षणाकीर्णसम्पूर्णोदप्रविग्रहम् / आकाशस्फटिकान्तःस्थज्वलज्ज्वालानलोज्ज्वलम् // 127 // तेजसामुत्तमं तेजो, ज्योतिषां ज्योतिरुत्तमम् / परमात्मानमर्हन्तं, ध्यायेनिःश्रेयसाप्तये // 128 // वीतरागोऽप्ययं देवो, ध्येयमानो मुमुक्षुभिः / स्वगापवर्गफलदः, शक्तिस्तस्य हि तादृशी // 129 // अप्रभागरूप शिखरपर आरूढ, सुखसंपत्तिने वरेला, पीडारहित अने निष्कर्म एवा श्री सिद्धात्मानुं ध्यान करवू // 120-122 // तथा आप्तोमा आद्य आप्त, देवोना पण अधिदैवत, घातिकर्मरहित, अनंत चतुष्टयने पामेला, पृथ्वीतलने दूर छोडीने (ऊंचे) आकाश प्रदेशमा रहेला, पोताना परम औदारिक शरीरनी प्रभाथी सूर्य करतां 20 पण अधिक तेजस्वी, महाआश्चर्यभूत चोत्रीश अतिशयो अने आठ प्रातिहार्योथी शोभता, मुनिवरो, तिर्यंचो, मनुष्यो अने देवताओनी पर्षदाओथी घेरायेला, जन्माभिषेक वगेरेमां प्राप्त थयेल पूजाना कारणे सौथी चढियाता, केवलज्ञानवडे निर्णीत विश्वतत्त्वोना उपदेशक, उज्ज्वल एवा अनेक लक्षणोथी व्याप्त, सर्वांग परिपूर्ण अने उन्नत देहवाळा, निर्मल (महान) स्फटिक रत्नमां प्रतिबिंबित प्रदीप्त ज्वालाओवाळा अग्नि समान उज्ज्वल, सर्व तेजोमां उत्तम तेज अने सर्व ज्योतिओमा उत्तम ज्योति स्वरूप एवा श्री अरिहंत 25 परमात्मानुं मोक्षनी प्राप्ति माटे ध्यान करवू // 123-128 // मुमुक्षुओवडे ध्यान कराता एवा आ देवाधिदेव वीतराग होवा छतां स्वर्ग के मोक्ष फळने .आपनारा छे, कारण के तेमनी शक्ति ज ते प्रकारनी अचिंत्य छे // 129 //
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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