________________ विभाग] 225 तत्त्वानुशासन इत्यादीन् मन्त्रिणो मन्त्रानहन्मन्त्रपुरस्सरान् / ध्यायन्ति यदिह स्पष्टं, नामध्येयमवैहि तत् // 108 // जिनेन्द्रप्रतिबिम्बानि, कृत्रिमाण्यकृतानि च / यथोक्तान्यागमे तानि, तथा ध्यायेदशङ्कितम् // 109 // यथैकमेकदा द्रव्यमुत्पित्सु स्थास्नु नश्वरम् / तथैव सर्वदा सर्वमिति तचं विचिन्तयेत् // 110 // चेतनोऽचेतनो वार्थो यो यथैव व्यवस्थितः / तथैव तस्य यो भावो याथात्म्यं तत्वमुच्यते // 111 // अनादि-निधने द्रव्ये, स्वपर्यायाः प्रतिक्षणम् / उन्मजन्ति निमजन्ति, जलकल्लोलवजले // 112 // यद्विवृत्तं यथा पूर्व, यच्च पश्चाद् विवर्त्यति / विवर्तते यदत्राद्य, तदेवेदमिदं च तत् // 113 // सहवृत्ता गुणास्तत्र, पर्यायाः क्रमवर्तिनः / स्यादेतदात्मकं द्रव्यमेते च स्युस्तदात्मकाः // 114 // 'अहं' मंत्रथी पुरस्कृत एवा पूर्वोक्त अने बीजा मंत्रों, जेमनुं मांत्रिको ध्यान करे छे, ते बधाने 15 तमे अहीं नामध्येय तरीके स्पष्टरीते जाणो // 108 // शाश्वत अने अशाश्वत एवी जिनप्रतिमाओनुं आगममां जेवी रीते वर्णन कर्यु के, तेवी रीते शंका विना ध्यान करो (अहीं स्थापनाध्येय- वर्णन छे) // 109 // द्रव्यध्येय जेम एक द्रव्य एकदा उत्पादशील, ध्रुव अने नश्वर छे, तेवी ज रीते सर्व द्रव्यो सर्वदा 20 (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्त) छे, ए तत्त्वने चिंतवतुं // 110 // .. चेतन के अचेतन पदार्थ, जेवी रीते व्यवस्थित छ, तेनो ते प्रकारनो जे भाव (स्वरूप) ते 'याथात्म्य' तत्त्व कहेवाय छे // 11 // - जलमां जलतरंगोनी जेम अनादि-अनंत द्रव्यमा पोताना पर्यायो प्रतिक्षण उत्पन्न थाय छे अने लय पामे छे // 112 // जेवी रीते जे (द्रव्य) पूर्व विवयु (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यने पाम्यं) हतुं, जे (द्रव्य) पछी विवर्त (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य) ने पामशे अने जे (द्रव्य) आजे-वर्तमानमां-विवर्ते (उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यने पामे) छे, ते ज आ छे अने आ ज ते छे. तात्पर्य के प्रत्येक द्रव्य द्रव्यरूपे सर्वकाळ एक सरलुं ज रहे छे // 113 // . तेमां सहभावी ते गुणो छे अने क्रममावी ते पर्यायो छे. द्रव्य गुणपर्यायात्मक छे अने गुणपर्यायो दव्यात्मक छे // 114 // 25 30