________________ 224 [संस्कृत नमस्कार स्वाध्याय हृत्पङ्कजे चतुःपत्रे, ज्योतिष्मन्ति प्रदक्षिणम् / 'अ-सि-आ-उ-सा'क्षराणि, ध्येयानि परमेष्ठिनाम् // 102 // ध्यायेद् 'अ-इ-उ-ए-ओ' च, तद्वन्मन्त्रानुदर्चिषः / मत्यादि-ज्ञान-नामानि, मत्यादि-ज्ञानसिद्धये // 103 // सप्ताक्षरं महामन्त्रं, मुखरन्धेषु सप्तसु। गुरूपदेशतो ध्यायेदिच्छन् दूरश्रवादिकम् // 104 // हृदयेऽष्टदलं पद्म, वगैः पूरितमष्टभिः / दलेषु कर्णिकायाञ्च, नाम्नाऽधिष्ठितमर्हताम् // 105 // गणभद्लयोपेतं, त्रिःपरीतं च मायया। क्षोणीमण्डलमध्यस्थं, ध्यायेदभ्यर्चयेच्च तत् // 106 // अकारादि-हकारान्ता मन्त्राः परमशक्तयः। स्वमण्डलगता ध्येया लोकद्धयफलप्रदाः // 107 // 10 चार दलवाळा हृदयकमळमां ज्योतिर्मय एवा 'अ-सि-आ-उ-सा' ए परमेष्ठिओना आद्य अक्षरोन 15 प्रदक्षिणामां ध्यान कर, जोईए. सा| अ आ| 102. 15 प्रदक्षिणामां ध्यान उ ते ज रीते 'अ-इ-उ-ए-ओ' ए उज्ज्वल मंत्रोनुं ध्यान करे, तथा मत्यादि ज्ञानोनी सिद्धिमाटे मत्यादि ज्ञानोना नामोनुं ध्यान करे. 103. दूरश्रवणादि लब्धिओने इच्छता साधके 'नमो अरिहंताणं' ए सप्ताक्षर मंत्र- (बे काननां, बे 20 नाकना बे आंखनां अने एक मुखD एम) सात मुखछिद्रोमां श्रीसद्गुरुना उपदेशथी ध्यान करवू जोईए (चक्षुः आदिनी सीमाथी बहार रहेला रूपादिनुं प्रत्यक्ष वगेरे पण आ मंत्रना ध्यानथी थाय छे). 104. कर्णिकामां श्रीअरिहंत भगवंतोना नाम ('अर्ह') थी अधिष्ठित अने आठ-दलोमां अष्टवर्ग ('अ-क-च-ट-त-प-य-श')थी पूरित एवा अष्टदल कमलनु हृदयमा ध्यान करवू. ते पद्म, गणधर-वलय (अडतालीश लब्धिपदो) थी सहित अने माया-'ही'कारथी त्रण वखत वेष्टित छे, एम चितवq. 25 आ ध्यान पूर्वे ए बधाने भूमिमंडलपर आलेखीने एनी पूजा पण करी शकाय. (अहीं 'मूलाधार चक्र ज्यां पृथ्वी तत्त्वनुं प्राधान्य छे, तेमां ध्यान करे, ए अर्थ पण लई शकाय.)॥१०५-१०६॥ 'अ' थी 'ह' सुधीना अक्षरो इहलोक अने परलोकना फळने अपनारा परमशक्तिघाळा मंत्रो छे. तेमनुं आधारादि *स्वचक्रोमां ध्यान करवू. 107. * विशेष माटे जुओ-श्रीसिंहतिलकसूरिकृत 'परमेष्ठिविद्यायन्त्रकल्प' न. स्वा० पृ. 111 थी 126.