________________ विभाग] 219 पञ्चपरमेष्ठिस्तवनम् सूत्रं यतीनतिपटुस्फुटयुक्तियुक्तं, युक्ति-प्रमाण-नय-भङ्गगमैर्गभीरम् / ये पाठयन्ति वरसरिपदस्य योग्या स्ते 'वाचका'चतुरचारुगिरो जयन्ति // 4 // सिद्धयङ्गनासुखसमागमबद्धवाञ्छाः, . संसारसागरसमुत्तरणैकचित्ताः। ज्ञानादिभूषणविभूषितदेहभागा, _रागादिघातरतयो 'यतयो' जयन्ति // 5 // अर्हतस्त्रिजगद्वन्द्यान्, त्रिलोकेश्वरपूजितान् / त्रिकालभावसर्व(सर्वभाव)ज्ञान्, त्रिविधेन नमाम्यहम् // 6 // सर्वजगदर्चनीयान् , सिद्धान् लोकाग्रसंस्थितान् / अष्टविधकर्ममुक्तान्, नित्यं वन्दे शिवालयान् // 7 // पञ्चविधाचाररतान् , व्रत-संयमनायकान् / आचायोन् सततं वन्दे, शरण्यान् भवदेहिनाम् // 8 // द्वादशाङ्गोरुपूर्वाख्य-श्रुतसागरपारगान् / उपदेष्ट्रनुपाध्यायानुभयोः सन्ध्ययोः स्तुमः // 9 // जेओ साधुओने प्रमाण, नय, भंग अने गमो वडे गंभीर एवा सूत्र (श्रुत) ने अत्यन्त कुशळतापूर्वक तथा स्पष्ट युक्तिओ वडे भणावे छे, अने जेओ उत्तम एवा सूरिपदने योग्य छे, ते चतुर अने मधुर वाणीवाळा 'उपाध्यायो' जय पामे छे // 4 // - सिद्धि-वधूना सुखकारक समागमनी दृढ अभिलाषावाळा, संसार-समुद्रने सारी रीते तरी 20 जवामां निपुण चित्तवाळा, ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूप आभूषणोथी सुशोभित देहवाळा अने रागादि (दोषो) ने नाश करवानी प्रबल कामनावाळा 'साधुओ' जय पामे छे // 5 // त्रणे लोकने वंदन करवा योग्य, त्रणे लोकना अधिपति (इन्द्रो) वडे पूजित अने त्रणे कालना सर्व भावोने जाणनारा अरिहंतोने हुं मन-वचन-कायाथी नमस्कार करुं छु // 6 // समग्र विश्वने पूजनीय, लोकना अप्रभागे रहेला, आठ प्रकारना कर्मोथी रहित अने कल्याणना 25 निकेतन रूप सिद्धोने हुं हमेशा वंदन करुं छु // 7 // . ... पांच प्रकारना आचार (न पाळवा) मां तत्पर, व्रत अने संयमना नायक अने संसारी प्राणीओने शरणरूप आचार्योने हुं निरंतर वंदन करूं छु // 8 // बार अंग अने (चौद) महापूर्वरूपी श्रुतसमुद्रना पारगामी तथा उपदेश करनारा उपाध्यायोनी अमे बन्ने संध्याए स्तुति करीए छीए // 9 //