________________ [67-22] पञ्चपरमेष्ठिस्तवनम् (वसन्ततिलका-वृत्तम्) नम्राऽमरेश्वरकिरीटनिविष्टशोणा रत्नप्रभापटलपाटलिताधिपीठाः / 'तीर्थेश्वराः' शिवपुरीपथसार्थवाहा, ____ निःशेषवस्तुपरमार्थविदो जयन्ति // 1 // लोकाग्रभागभुवना भवभीतिमुक्ताः, ज्ञानावलोकितसमस्तपदार्थसार्थाः / स्वाभाविकस्थिरविशिष्टसुखैः समृद्धाः, 'सिद्धा' विलीनघनकर्ममला जयन्ति // 2 // आचारपञ्चकसमाचरणप्रवीणाः, सर्वशासनधुरकैधुरन्धरा ये। . ते 'सूरयो' दमितदुर्दमवादिवृन्दा, विश्वोपकारकरणप्रवणा जयन्ति // 3 // अनुवाद विनय सहित नमेला इन्द्रोना मुकुटमां जडेला अरुण रत्नोनी कान्तिना समूहथी अरुण वर्णवाळ थयु छे पादपीठ जेमनुं एवा, मोक्षपुरीना मार्गमां सार्थवाह समान तथा सम्पूर्ण वस्तुओना परम अर्थने जाणनारा 'तीर्थंकरो' जय पामे छे // 1 // 20 लोकना अग्रभाग पर छे निवास जेमनुं एवा, संसारना भयोथी मुक्त, केवलज्ञानद्वारा समस्त पदार्थोना समूहने जाणनारा, स्वाभाविक, स्थिर तथा विशिष्ट प्रकारना सुखोथी समृद्ध अने विलीन थयो छे घनकर्मरूप मल जेमनो एवा 'सिद्धो' जय पामे छे // 2 // ___ज्ञानादि पांच आचारोना परिपालनमा निपुण, जिन-शासननी धुराने वहन करवामां समर्थ, दुर्जेय एवा वादि-समूहनुं दमन करनारा अने विश्वपर उपकार करवामां कुशल एवा 'आचार्यो' जय 25 पामे छे॥३॥