________________ विभाग] 217 आत्मरक्षानमस्कारस्तोत्रम् महाप्रभावा रक्षेयं, क्षुद्रोपद्रव-नाशिनी / परमेष्ठि-पदोद्भुता, कथिता पूर्वसरिभिः // 7 // यश्चैवं कुरुते रक्षा, परमेष्ठि-पदैः सदा / तस्य न स्याद् भयं व्याधिराधिश्चापि कदाचन // 8 // परमेष्ठिपदोथी बनेली आ रक्षा महाप्रभाववाळी छे, क्षुद्र उपद्रवोनी नाशक छे अने 5 पूर्वाचार्योए कही छे // 7 // जे (जीव) परमेष्ठि-पदोवडे आ प्रमाणे सदा रक्षा करे छे, तेने क्यारेय भय, रोग अने मानसिक चिंताओ थती नथी // 8 // परिचय आ स्तोत्र केटलांक प्रकाशनोमां प्रसिद्धि पाम्युं छे अने जैन समाजमां तेनो पाठ करवानो ठीक 10 ठीक प्रचार छ। आ स्तोत्र 'ब्रहन्नमस्कारस्तोत्र' अथवा 'वज्रपञ्जर' नामे ओळखाय छ। आ स्तोत्रमआठ पद्यो छे। - आ स्तोत्रनी बे हस्तलिखित प्रतिओ अमने मळी हती। एक प्रति, पूना-भांडारकर रिसर्च इन्स्टिटयूटना संग्रहनी प्रति नं0 11 नी हती, ज्यारे बीजी प्रति लींबडी, शेठ आणंदजी कल्याण जीना हस्तलिखित भंडारनी प्रति नं. 765 नी हती। आ बंने प्रतिओने सामे राखी स्तोत्रनो मूल पाठां 15 लेवामां आव्यो छे, ते स्तोत्र अमे अहीं अनुवाद साथे प्रगट कयुं छे। आ स्तोत्रना कर्ता विशे माहिती मळी नथी।