________________ [66-21] आत्मरक्षानमस्कारस्तोत्रम् (अनुष्टुप्-वृत्तम्) ॐ परमेष्ठिनमस्कार, सारं नवपदात्मकम् / ___ आत्मरक्षाकरं वज्रपञ्जराभं स्मराम्यहम् // 1 // 'ॐ नमो अरिहंताणं', शिरस्क शिरसि स्थितम् / ॐ नमो सम्बसिद्धाणं', मुखे मुखपटं वरम् // 2 // 'ॐ नमो आयरियाणं', अङ्गरक्षाऽतिशायिनी। 'ॐ नमो उवझायाणं', आयुधं हस्तयोर्दृढम् // 3 // 'ॐ नमो लोए सव्वसाहूणं', मोचके पादयोः शुभे / 'एसो पंचनमुक्कारो', शिला वज्रमयी तले // 4 // 'सन्च-पाव-प्पणासणो', वप्रो वज्रमयो बहिः। 'मंगलाणं च सव्वेसि', खादिराङ्गार-खातिका // 5 // 'स्वाहा'न्तं च पदं ज्ञेयं, 'पढमं हवइ मंगलं'। वोपरि वज्रमयं, पिधानं देहरक्षणे // 6 // अनुवाद सारभूत, नवपदमय, वज्रना पांजरानी माफक आत्मरक्षा करनार एवा परमेष्ठि-नमस्कारनुं हुं ॐकारपूर्वक स्मरण करुं छं // 1 // __'ॐ नमो अरिहंताणं' ए पद मस्तक पर रहेल शिरस्त्राण छे / 'ॐ नमो (सव्व) सिद्धाणं' ए 20 पद मुख पर श्रेष्ठ मुखपट (मुख-रक्षक-वस्त्र) छे // 2 // ___'ॐ नमो आयरियाणं' ए पद उत्तम अंग-रक्षा (कवच-बख्तर) छे, 'ॐ नमो उवज्झायाणं' ए पद बन्ने हाथोमा रहेलं मजबूत हथियार छे // 3 // 'ॐ नमो लोए सव्व-साहूणं' ए पद बन्ने पगोनी पवित्र मोचक-पगनी रक्षा माटेनी गोठण सुचीनी मोजडीओ छ। 'एसो पंच-नमुक्कारो' ए पद तळीयामां रहेली वज्रमय शिला छे // 4 // 'सव-पाव-प्पणासणो' ए पद बहारनो वज्रमय किल्लो छे, अने 'मंगलाणं च सव्वेसिं' ए पद (किल्लाने फरती) खेरना अंगारावाळी खाई छे // 5 // 'स्वाहा' अंतवाळु एटले 'पढम हवइ मंगलं' (पढमं हवइ मंगलं स्वाहा / ) स्वाहा' ए पद शरीरनी रक्षा माटे किल्ला उपर रहेलं वज्रमय ढांकण छे // 6 // 25