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________________ 220 नमस्कार स्वाध्याय [संस्कृत निर्वाणसाधकान् साधून् , सर्वजीवदयापरान् / व्रत-शील-तपोयुक्तान , वन्दे सद्गतिकानिणः // 10 // एवं पञ्चनमस्कारः, सर्व पापप्रणाशनः। मङ्गलानां च सर्वेषां, प्रथमं भवतु मङ्गलम् // 11 // मोक्षमार्गना साधनारा, सर्व जीवोनी दयामां तत्पर, व्रत, शील अने तपथी युक्त तथा सद्गतिने चाहनारा साधुओने हुं वंदन करुं छु // 10 // आ पंचनमस्कार सर्व पापोने नाश करनार अने बधा मंगलोमां प्रथम-उत्कृष्ट मंगल थाओ // 11 // - परिचय आ स्तवन 'श्री श्रुतज्ञान अभीधारा' नामक पुस्तकमांथी लेवामां आव्युं छे, जेना संग्राहक प० पू० . 10 पंन्यास श्रीक्षमाविजयजी गणिवर छे, अने जे निर्णयसागर प्रेसमा सन् 1936 मा छपाईने प्रकाशित थयेल छ। . प्रारंभना पांच पद्यो वसन्ततिलकावृत्तमा छे अने अन्तिम छ पद्यो अनुष्टुपमा छ। आ स्तवमना कर्ता विशे जाणवामां आवेल नथी। [68-23] नमस्कारस्तवनम् __15 . अर्हतः सकलान् वन्दे, वन्दे सिद्धांश्च शाश्वतान् / आचार्यानादराद् वन्दे, वन्दे श्रीवाचकानपि // 1 // सर्वसाधूनहं वन्दे, नास्ति वन्धमतः परम् / / परमा पात्रता मेऽभूत् , वन्धसर्वस्ववन्दनात् // 2 // तदेषां कीर्तनादस्तु, कीर्तिः कल्याणमेव च / 20 . वचनातिक(तीत)लाभं हि, नामाऽपि श्रीमहात्मनाम् // 3 // अनुवाद हुं सर्व अरिहंतोने वंदन करूं छु, शाश्वत एवा सिद्धोने हुं वंदन करं छु, आचार्योने आदरथी वंदन करुं छु, वाचक उपाध्यायोने वंदन करूं छु, सर्व साधुओने वंदन करूं छु-आनाथी (पंच परमेष्टीथी) उत्कृष्ट कोई वंदनीय नथी। वंदन करवा योग्यने पोतानी सर्व शक्तिथी वंदन करवाथी 25 मारामां उत्कृष्ट पात्रता आवी छे। एमना कीर्तनथी (सौने) कीर्ति अने कल्याण प्राप्त थाओ। महात्माओनुं नाम पण वचनातीत लाभ ने आपनार होय छे // 1-3 // परिचय आ स्तवननी एक प्रति मुंबई श्री शांतिनाथ जैन मंदिर स्थित ज्ञानभंडारमांथी मळी हती। त्रण अनुष्टुप् श्लोकात्मक आ कृतिना कर्ता कोण हशे ते जाणवामां आव्युं नथी। आ स्तोत्र अहीं अनुवाद साथे 30 अमे प्रगट कर्यु छे॥
SR No.004318
Book TitleNamaskar Swadhyay Sanskrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year1962
Total Pages398
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size10 MB
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